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सटीक:बेनीपुरी
 

दीजिए—आवागमन से छुड़ाइए—(अथवा) यदि बाँधने ही से (सांसारिक माया-मोह के बंधनों में फँसाये रखने से ही) संतोष हो, तो अपने गुणों (की रस्सियों) से ही बाँधिए। (बंधन या मोक्ष, दो में से कोई एक, तो देना ही पड़ेगा!)

 

 

परिशिष्ट

ये पचीस दोहे भी बिहारीलाल के ही हैं।
कोऊ कोरिक संग्रहौ कोऊ लाख हजार।
मो सम्पति जदुपति सदा बिपति-बिदारनहार॥७०१॥

अन्वय—कोऊ हजार लाख कोऊ कोरिक संग्रहौ, मो सम्पति सदा बिपति-बिदारनहार जदुपति।

कोई हजारों, लाखों या करोड़ों की सम्पत्ति संग्रह करे, किन्तु मेरी सम्पत्ति तो वही सदा 'विपत्ति के नाश करनेवाले' यदुनाथ (श्रीकृष्ण) हैं।


ज्यौं ह्वैहौं त्यौं होऊँगौ हौं हरि अपनी चाल।
हठु न करौ अति कठिनु है मो तारिबो गुपाल॥७०२॥

अन्वय—हरि हौं अपनी चाल ज्यौं ह्वैहौं त्यौं होऊँगौ, हठु न करौ, गोपाल, मो तारिबो अति कठिनु है।

हे कृष्ण, मैं अपनी चाल से जैसा होना होगा, वैसा होऊँगा। (मुझे तारने के लिए) तुम हठ न करो। हे गोपाल, मुझे तारना अत्यन्त कठिन है—(हँसी-खेल नहीं है, तारने का हठ छोड़ दो, मैं घोर नारकी हूँ)।


करौ कुबत जगु कुटिलता तजौं न दीनदयाल।
दुखी होहुगे सरल चित बसत त्रिभंगीलाल॥७०३॥

अन्वय—जगु कुबत करौ दीनदयाल कुटिलता न तजौं त्रिभंगीलाल सरल चित बसत दुखी होहुगे।