पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३०

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बिहारी-सतसई
 

मकराकृति = मकर+आकृति = मछली के आकार का । घरचौ = अधिकार कर लिया । समरु = स्मर = कामदेव । ड्योढ़ी = फाटक, द्वार । निसान = झंडा ।

श्रीकृष्ण के कानों में मछली के आकार के कुंडन सोह रहे हैं । मानों कामदेव ने हृदय-रूपी गढ़ पर अधिकार कर लिया है और गढ़ के द्वार पर उनकी ध्वजा फहरा रही है ।

नोट-कामदेव के झंडे पर मछली या गोह का चिह्न माना गया है । इसीसे उन्हें मीनकेतु, झखकेतु, मकरध्वज, आदि कहते हैं ।

गोधन तूँ हरष्यो हियैं घरियक लेहि पुजाइ ।
समुझि परैगी सीस पर परत पसुनु के पाइ ।। १७ ।।

अन्वय-गोधन, तूँ हिय हरष्यो वरियक पुजाइ लेहि, सीस पर पसुनु पाइ परत समुझि परैगी ।

गोधन = गोबर की बनी हुई गोवर्द्धन की प्रतिमा, जिसे कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को गृहस्थ अपने द्वार पर पूजते हैं और पूजा के बाद पशुओं से रौंदवाते हैं । धरियक=घरी+एक= एक घड़ी ।

अरे गोधन ! तू हृदय में हर्षित होकर एक घड़ीभर अपनी पूजा करा ले । सिर पर पशुओं के पाँव पड़ने पर ही ( इस पूजा की यथार्थता) समझ पड़ेगी !

मिलि परछाँही जोन्ह सौं रहे दुहुनु के गात ।
हरि-राधा इक संग ही चले गली महिं जात ॥ १८ ॥

अन्वय-दुहुन के गात परछाँही (अरु) जोन्ह हरि राधा इक संग ही गली महिं चले जात ।

परछाँही = छाया । जोन्ह = चाँदनी । दुहुन = दोनों । गात = शरीर । दोनों के शरीर (एक का गोरा और दूसरे का साँवला) परछाई और चाँदनी में मिल रहे हैं । यों, श्रीकृष्ण और राधा एक ही साथ (निःशंक भाव से) गली में चले जाते हैं ।

नोट-राधा का गौर शरीर उज्ज्वल चाँदनी में और श्रीकृष्ण का श्यामल शरीर राधा की छाया में मिल जाता था । यों उन दोनों को गली में जाते कोई देख ही नहीं सकता था । फलतः चाँदनी रात में भी वे निःशंक चले जाते थे ।