पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/३०

विकिस्रोत से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८ बिहारी-सतसई मकराकृति=मकर+आकृति =मछली के आकार का । घरचौअधिकार कर लिया । समरु = स्मर= कामदेव । ड्योढ़ी=फाटक, द्वार | निसान = झंडा । श्रीकृष्ण के कानों में मछली के आकार के कुंडन सोह रहे हैं । मानों कामदेव ने हृदय-रूपी गढ़ पर अधिकार कर लिया है और गढ़ के द्वार पर उनकी ध्वजा फहरा रही है। नोट-कामदेव के झंडे पर मछली या गोह का चिह्न माना गया है । इसीसे उन्हें मीनकेतु, झखकेतु, मकरध्वज, आदि कहते हैं। गोधन तूं हरष्यो हिय घरियक लेहि पुजाइ । समुझि परैगी सीस पर परत पसुनु के पाइ ।। १७ ।। अन्वय-गोधन, तूं हिय हरष्यो वरियक पुजाइ लेहि, सीस पर पसुनु पाइ परत समुझि परेगी। गोधन = गोबर की बनी हुई गोवर्द्धन की प्रतिमा, जिसे कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को गृहस्थ अपने द्वार पर पूजते हैं और पूजा के बाद पशुओं से रौंदवाते हैं । धरियक=घरी+एक= एक घड़ी। अरे गोधन ! तू हृदय में हर्षित होकर एक घड़ीभर अपनी पूजा करा ले । सिर पर पशुओं के पाँव पड़ने पर ही ( इस पूजा की यथार्थता) समझ पड़ेगी ! मिलि परछाँही जोन्ह सौं रहे दुहुनु के गात । हरि-राधा इक संग ही चले गली महिं जात ॥ १८ ॥ अन्वय-दुहुन के गात परछाँही (अरु) जोन्ह हरि राधा इक संग ही गली महिं चले जात । परछाँही = छाया । जोन्ह = चाँदनी । दुहुन =दोनों । गात=शरीर । दोनों के शरीर (एक का गोरा और दूसरे का साँवला) परछाई और चाँदनी में मिल रहे हैं। यों, श्रीकृष्ण और राधा एक ही साथ (निःशंक भाव से) गली में चले जाते हैं। नोट-राधा का गौर शरीर उज्ज्वल चाँदनी में और श्रीकृष्ण का श्यामल शरीर राधा की छाया में मिल जाता था। यों उन दोनों को गली में जाते कोई देख ही नहीं सकता था। फलतः चाँदनी रात में भी वे निःशंक चले जाते थे। ।