बिहारी-सतसई • पीतपटु =पीला घस्त्र, पीताम्बर । सलौने (स= सहित, लौने लावण्य) =नमकीन, सुन्दर । नीलमनि = नीलम । आतप=धूप । सुन्दर साँवले शरीर पर पीताम्बर अोढ़े श्रीकृष्ण यों शोमते हैं मानों नीलम के पहाड़ पर प्रातःकाल की (सुनहली) धूप पड़ी हो । नोट-यहाँ कृष्णजी की समता नीलम के पहाड़ से और पीताम्बर की तुलना धूप से की गई है। प्रातःरवि को दिव्य और शीतल मधुर किरणों से पीताम्बर की उपमा बड़ी अनूठी है। किती न गोकुल कुल-बधू काहि न किहिं सिख दीन । कौनँ तजी न कुल-गली है मुरली-सुर लीन ॥ २२ ।। अन्वय-गोकुल कुल-बधू किती न काहि किहिं सिख न दीन, मुरली-सुर लीन है कौनें कुल-गली न तजी । किती =कितनी । काहि =किसको । किहि =किसने । सिख =शिक्षा । कुल-गली = वंश-परम्परा की प्रथा । गोकुल में न जाने कितनी कुलवधुएँ हैं और किसको किसने शिक्षा न दी? (परन्तु कुलवधू होकर और उपदेश सुनकर मी) वंशी की तान में डूबकर किसने कुल की मर्यादा न छोड़ी ? अधर धरत हरि के परत ओठ-डीठि पट जोति । हरित बाँस को बाँसुरी इन्द्र-धनुष रंग होति ॥ २३ ॥ अन्वय-अधर धरत हरि के अोठ-डोंठि पट जोति परत, हरित बाँस की बाँसुरी इन्द्र-धनुष रँग होति । अधर = होंठ, ओष्ठ । डीठि = दृष्टि । हरित = = हरा। होठों पर (वंशो) धरते ही श्रीकृष्ण के (लाल) होंठ, (श्वेत, श्याम और रक्त वर्ण) दृष्टि तथा (पीले) वस्त्र की ज्योति ( उस वंशी पर ) जब पड़ती है, तब वह हरे बाँस की वंशी इन्द्रधनुष की-सी बहुरंगी हो जाती है । नोट-इन्द्रधनुष वर्षाकाल में आकाश-मंडल पर उगता है । वह मण्डला- कार, चमकीला, रँगीला और सुहावना होता है। उसमें सात रंग देखे जाते हैं। यहाँ कवि ने वंशो में की रंगों की कल्पना बड़ी खूबी से की है। होंठ के