पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—फिरि फिरि दौरत देखियत नैंकु निचले न रहैं, ए कजरारे नैन कौन पर कजाकी करत।

निचले=निश्चल, स्थिर। नेकु=जरा भी। कजरारे=काजल लगाये हुए। कजाकी =(कजा=मृत्यु) हत्यारापन, लुटेरापन, लूटमार।

बार-बार दौड़ते हुए दीख पड़ते हैं, जरा भी स्थिर नहीं रहते। (तुम्हारे) ये काजल लगे हुए नेत्र किसपर डाका डाल रहे हैं—किसकी हत्या करने के लिए इधर-उधर दौड़ लगा रहे हैं?

खरी भीरहू भेदिकै कितहू ह्वै उत जाइ।
फिरै डीठि जुरि डीठि सों सबकी डीठि बचाइ॥६०॥

अन्वय—खरी भीरहू भेदिकै कितहू ह्वै उत जाइ, डीठि सबकी डीठि बचाइ डीठि सों जुरि फिरै।

खरी=भारी। भेदिक=पार करके। कितहू ह्वै=किसी ओर से होकर। उत=वहाँ। डीठि=नजर। जुरि=मिलकर। डीठि बचाइ=आँखें बचाकर।

भारी भीड़ को भी भेद कर, और किसी और से भी वहाँ (नायक के पास) पहुँचकर, नायिका की नजर, सबकी आँखें बचा, उसकी (नायक की) नजर से मिल, फिर (साफ कन्नी काटकर) लौट आती है।

सबही त्यौं समुहाति छिनु चलति सबनु दै पीठि।
वाही त्यौं ठहराति यह कविलनवी लौं दीठि॥६१॥

अन्वय—कबिलनवी लौं यह दीठि सब ही तन छिन समुहाति, सबनु पीठि दै चलति, वाही तन ठहराति।

समुहाति=सामना करना, टकराना। कबिलनवी=कम्पास के समान एक प्रकार का यंत्र, जिसकी सूई सदा पश्चिम की ओर रहती है, चोर पकड़ने की वह कटोरी जो मंत्र पढ़कर चलाई जाती है। चलति सबनि दै पीठि= सबका तिरस्कार करती चली जाती है।

किबलनुमा की सूई के समान उसकी यह नजर सभी के शरीर से क्षणभर के लिए टकराती है, फिर सभी से विमुख होकर चल पड़ती है, और उसके—अपने प्रेमिक के—रूप पर आकर ठहरती है।