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सटीक : बेनीपुरी
 

उड़ता है, फिर एकबारगी ऊपर उड़ शिकार पर भीषण रूप से टूट पड़ता और उसे झकझोर नीचे गिरा देता है। लज्जाशीला नायिका की उड़नबाज नजर की भी यही गति है—रसज्ञ पाठक जानते हैं!

तिय कित कमनैती पढ़ी बिनु जिहि भौंह-कमान।
चल चित-बेझैं चुकति नहिं बंक बिलोकनि बान॥७६॥

अन्वय—तिय कित कमनैती पढ़ी, बिनु जिहि भौंह-कमान, बंक बिलोकनि बान, चल चित-बेझै नहिं चुकति।

कित=कहाँ। कमनैती=तीर चलाने की कला, बाण-विद्या। जिहि=ज्या=डोरी, प्रत्यंचा। चल=चंचल। बेझै=निशान, लक्ष्य। बंक=टेढ़ा। बिलोकनि=चितवन, दृष्टि।

इस स्त्री ने यह बाण-विद्या कहाँ पढ़ी कि बिना डोरी के भौंह रूपी धनुष और तिरछी दृष्टि-रूपी बाण से चंचल चित्त-रूपी निशाने को बेधने से नहीं चूकती?

दुर्यौ खरै समीप कौ लेत मानि मन मोदु।
होत दुहुन के दृगनु ही बतरसु हँसी-बिनोदु॥७७॥

अन्वय—दुर्यौ खरै समीप कौ मन-मोदु मानि लेत, दुहुन के दृगन ही बतरसु हँसी-बिनोदु होत।

(नायक-नायिका दोनों) दूर-दूर खड़े होने पर भी निकट होने का आनन्द मन में मान लेते हैं—यद्यपि दोनों दूर-दूर खड़े हैं तथापि निकट रहकर सम्भाषण करने का आनन्द अनुभव कर रहे हैं, क्योंकि दोनों की आँखों (इशारों) से ही रसीली बातचीत, दिल्लगी और चुहल हो रही है।

छुटै न लाज न लालचौ प्यो लखि नैहर-गेह।
सटपटात लोचन खरे भरे सकोच सनेह॥७८॥

अन्वय—प्यो नैहर-गेह लखि न लाज छुटै न लालचौ; सकोच-सनेह भरे लोचन खरे सटपटात।

प्यौ=प्रियतम। खरे=अत्यन्त। नैहर=मायके, पीहर। सटपटात=विक्षिप्त, बेचैन हो रहे हैं।

पति को अपने मायके में देखकर न तो (उन्हें भर नजर देखने के लिए)