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सटीक : बेनीपुरी
 

बेधक बेधनेवाला। अनियारे=नुकीले। निषेध=रुकावट। बेधु=छेद, छिद्र। नासा = नाक। बरबट=अदबदाकर, जबरदस्ती।

चुभीली नुकीली आँखें यदि हृदय को छेदती हैं, तो छेदने दे, उन्हें मना मत कर (वे ठहरी चुभीली नुकीली, बेधना तो उनका काम ही है); क्योंकि तेरी नाक का बेध—लौंग पहनने की जगह का छेद—मेरे हृदय को बरबस बेध रहा है—जो स्वयं बेध है, वही बेध रहा है, तो फिर बेधक क्यों न बेधे?

जदपि लौंग ललितौ तऊ तूँ न पहिरि इकआँक।
सदा साँक बढ़ियै रहै रहै चढ़ी-सी नाँक ॥८७॥

अन्वय—जदपि लौंग ललितौ, तऊ तू इकआँक न पहिरि, नाँक चढ़ी-सी रहै सदा साँक बढियै रहै।

ललितौ=सुन्दर। इकआँक=निश्चय। साँक बढ़ियै रहे=डर बना रहता है। रहे चढ़ी-सी नाक=नाक चढ़ी रहना, क्रुद्ध या रुष्ट होना।

यद्यपि लौंग (देखने में) अत्यन्त सुन्दर है, तो भी तू निश्चय उसे न पहन; (क्योंकि उसके पहनने से) तेरी नाक सदा चढ़ी-सी रहती है, जिससे मेरे मन में सदा भय की वृद्धि होती है (कि तू शायद क्रुद्ध तो नहीं है)!

बेसरि मोती दुति-झलक परी ओठ पर आइ।
चूनौ होइ न चतुर तिय क्यों पट पोंछयो जाइ॥८८॥

अन्वय—बेसरि मोती दुति-झलक ओठ पर आइ परी, चतुर तिय चूनौ न होइ, पट क्यों पौंछयो जाइ।

पट=कपड़ा। बेसरि=नाक की झुलनी, बुलाक।

बेसर में लगे हुए मोती की आभा की (सफेद) परिछाँई तुम्हारे ओठों पर आ पड़ी है। हे सुचतुरे! वह चूना नहीं है (तुमने जो पान खाया है, उसका चूना होठों पर नहीं लगा है), फिर वह कपड़े से कैसे पोंछी जा सकती है?

नोट—नायिका के लाल-लाल होठों पर नकवेसर के मोती की उजली झलक आ पड़ी है, उसे वह भ्रमवश चूने का दाग समझकर बार-बार पोंछ रही है; किन्तु वह मिटे तो कैसे?