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सटीक : बेनीपुरी
 

अन्वय—चिलक-चौंधि मैं रूप-ठग हाँसी-फाँसी डारि, नैन-बटोही मारि ठोढ़ी-गाड़ महि डारे।

ठोढ़ी=ठुड्डी, चिबुक। चिलक=चमक, कान्ति।

(शरीर की) कान्ति की चकाचौंध में सौन्दर्य-रूपी ठग ने हँसी-रूपी फाँसी डाल (दर्शक के) नेत्र-रूपी बटोही को मारकर उसे ठुड्डी-रूपी गढ़े में डाल रक्खा है। यह स्याम-लीला (गोदना की काली बिन्दी) उसी की लाश है।

नोट—एक उर्दू कवि ने भी 'तिल' को आशिक का 'जलाभुना दिल' कहा है। क्या खूब!

तो लखि मो मन जो लही सो गति कहो न जाति।
ठोढ़ी-गाड़ गड्यौ तऊ उड्यौ रहत दिन-राति॥९७॥

अन्वय—तो लखि मो मन जो गति लही सो कही न जाति, ठोढ़ी-गाड़ गड्यौ तऊ दिन-राति उड्यौ रहत।

मन गड़्यौ=मन बसना, मन डूबा रहना। मन उड़्यौ=मन उड़ना, मन उचटा रहना, कहीं मन न लगना।

तुम्हें देखकर मेरे मन ने जो चाल पकड़ी है, वह (चाल) कहीं नहीं जाती—अजीब चाल है। यद्यपि वह तुम्हारी ठुड्डी के गढ़े में गड़ा (धँसा) रहता—तल्लीन रहता है, तो भी दिन-रात उड़ता—उचटा ही रहता है— चँचल ही बना फिरता है!

नोट—यहाँ कवि ने 'मन का गड़ना' और 'मन का उड़ना' इन दोनों मुहाविरों का प्रयोग अच्छा भिड़ाया है।

लौने मुँह दीठि न लगै यौं कहि दीनौ ईठि।
दूनी ह्वै लागन लगी दियै दिठौना दीठि॥९८॥

अन्वय—ईठि लौंनै मुँह दीठि न लगै, यौं कहि दिठौना दीनौ दिये दीठि दूनी ह्वै लगन लगी।

लौने=लावण्यमय। ईठि=हितैषिणी। दिठौना=काजल की बिन्दी; नजर लग जाने के डर से स्त्रियाँ काजर की बिन्दी लगाती हैं।