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बिहारी-सतसई
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अन्वय--नीलै अंचर-चीर छिप्यो छबीलौ मुँह लसै, मनौ कलानिधि कालिन्दी कैं नीर झलमलै।

छिप्यो = ढँका हुआ। छबीलौ = सुन्दर। नीलै अंचर-चीर = नीली साड़ी का अँचरा। कलानिधि = चन्द्रमा। कालिन्दी = यमुना।

नीले अंचल में ढँका हुआ सुन्दर मुखड़ा (ऐसा) शोभ रहा है, मानो चन्द्रमा (नीले जल वाली) यमुना के पानी में झलक रहा हो--अपनी प्रभा बिखेर रहा हो।

लसै मुरासा तिय-स्रवन यौं मुकुतन दुति पाइ।
मानहु परस कपोल कैं रहे सेद-कन छाइ ॥१२०॥

अन्वय--मुकतन दुति पाइ मुरासा तिय-स्रवन यौं लसै मानहु कपोल कैं परस सेद-कन छाइ रहे।

मुरासा = कर्णफूल। मुकुतन = मुक्ताओं, मोतियों। परसे = स्पर्श। कपोल = गाल। सेद = स्वेद, पसीना। कन = कण, बिन्दु।

मोतियों की कान्ति पाकर (मुक्ता-जटित) कर्णफूल, नायिका के कानों में यों शोभते हैं, मानो (उसके) गालों के स्पर्श से (उन कर्णफूलों पर) पसीने के कण छा रहे हों।

नोट--धन्य बिहारी! तुमने प्राणहीन कर्णफूलों पर भी स्त्री के गालों के सौंदर्य का जादू डाल ही दिया! कोमल कपोलों के स्पर्श से कर्णफूलों के भी पसीने निकल आये--सात्विक भाव हो आया!

सहज सेत पँचतोरिया पहिरत अति छबि होति।
जल-चादर कै दीप लौं जगमगाति तनि जोति ॥१२१॥

अन्वय--सहज सेत पँचतोरिया पहिरत छबि अति होति, जल चादर कै दीप-लौं तन-जोति जगमगाति।

सहज = स्वाभाविक। सेत = श्वेत, सफेद। पँचतोरिया = एक प्रकार का झूना सफेद रेशमी कपड़ा। लौं = समान।

स्वाभाविक रूप से सफेद पँचतोरिया पहनने पर उसकी शोभा बढ़ जाती