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सटीक : बेनीपुरी
 


मानहु मुँह-दिखरावनी दुलहिहिं करि अनुरागु।
सासु सदनु मनु ललनहूँ सौतिन दियौ सुहागु ॥१७२॥

अन्वय—मानहु मुँह-दिखरावनी दुलहिहिं अनुराग करि सास सदनु ललनहूँ मनु सौतिन सुहाग दियौ।

मुँह-दिखरावनी=पहले-पहल नई दुलहिन की मुँहदेखी की रस्म। सदन=घर। सुहागु=सौभाग्य, पतिप्रेम।

मानो मुँह-देखौनी में दुलहिन पर प्रेम करके (उपहार में) सास ने घर, प्रीतम ने मन, और सौतिन ने सुहाग दे दिये।

नोट—सौतिन के सुहाग देने का अभिप्राय यह है कि अब नायक इसी पर अनुरक्त रहेगा, उसे पूछेगा भी नहीं।

निरखि नवोढ़ा नारि-तन छुटत लरिकई लेस।
भौ प्यारो पीतमु तियनु मनहु चलत परदेस ॥१७३॥

अन्वय—नवोढ़ा नारि-तन लरिकई लेस छुटत निरखि तियनु पीतमु प्यारो भौ मनहु परदेस चलत।

नवोढ़ा=नववयस्का। लरिकई=लड़कपन। लेस=सम्बन्ध। तियनु=स्त्रियों को। मनहु=मानो।

नवयुवती नायिका के शरीर से लड़कपन का सम्बन्ध छूटते देखकर—उसे बालिका से नवयुवती होते देखकर—(अन्य) स्त्रियों को (अपना) पति इतना प्यारा हो गया, मानो वह परदेश जा रहा हो।

नोट—अन्य स्त्रियों को भय हो गया कि उस नवयुवती के रूप-गुण पर कहीं ये आकृष्ट न हो जायें, अतएव अपने पति को बहुत ही प्यार करने लगीं। परदेश जाते समय पति और भी प्यारा लगता है।

ढीठ्यौ दै बोलत हँसति पोढ़-विलास अपोढ़।
त्यौं त्यौं चलत न पिय नयन छकए छकी नवोढ़ ॥१७४॥

अन्वय—ढीठ्यौ दै बोलति हँसति; अपोढ़ (ह्वै) पोढ़ विलास (दस्सावति) त्यौं त्यौं पिय नयन न चलत (मनों) छकी नवोढ़ छकए।