६९ मटांक देनंजुरी मानहु उह-दिवरावनी दुलहिहिं करि अनुरागु। सासु सहनु ननु तनहूँ नौतिन देगे मुलुप २०॥ अन्वर-मानह मुंड-दिवरावनी दुलहि अनुराग की स- बहनु उसलाई मनु मोतिन सुहाग दिया। उदिवाकनी = रहने नई तुईन के झं = क नुहा सोनाम, गांकेन। प्रटनने , और कमेंटेन रे मुहार दे दिये। पर अनुकहेगा, पानी नहीं निरखि नबोढ़ा नारि-जन छुटर सारिकई लेस । भौधारो पीटनु विषतु मनहु व परदेस ॥ १३ ॥ अन्वर-संगी उन चराई र नि पारी मौ नन्दु र बचत । नवोढ़ा नमक। कई = तड़कन्न।केनन् न दुनी नाक के शो इसन्न का हटा देना- बाडेकरचुरत होते देखकर-(द) बियों को पना) म कहीं दे आट न हो जाये, अव भने गाने को दुर हो यार करने हों। परदेश जलमा गत और मदार लगता है। डंख्यौदै बोलत इसति पोड़-विलास अपोढ़ । त्यौलौ उलट न पिय नवन अकए बको नवोद ॥१७॥ अन्वब-कब है बजते है सते, आयोड (है) चोड़ विज्ञान (दसावडे) स्वौयौं शिव स्थर र उजत (मनों) उकी बरोड़ उकर। है