पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/९०

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9 बिहारी-सतसई ढोठ्यौ दै= ढिठाई से । पौढ़-बिलास = प्रौढ़ा के समान हावभाव । अपोढ़ = अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा नहीं, नवोढ़ा । चलत न पिय नयन =नायक की आँखें चंचल नहीं होती, स्थिर होकर देखती हैं। छकए=शराब पिलाना। छकी =शराब पिये हुई, मदमस्त । नवोढ़ा=नवयुवती । ज्यों-ज्यों ढिठाई से बोलती और हँसती है, प्रौढ़ा न होने पर भी- पूर्णवयस्का न होने पर भी-प्रौढा का-सा हाव-भाव (दिखला रही) है, त्यों-त्यों प्रीतम ( नायक) की आँख नहीं चलती हैं-एकटक उसकी श्रीर देखती रहती हैं; ( मानो शराब पीकर उस ) मदमस्त नवयुवती ने ( उन्हें भी शराब) पिला दिया हो। सनि कजल चख झख-लगन उपज्यौ सुदिन सनेहु । क्यौं न नृपति है भोगवै लहि सुदेस सबु देहु ।। १७५ ।। अन्वय-सनि कजल, चख झख लगन-सुदिन सनेहु उपज्यो। सत्रु देहु सुदेसु लहि क्यों न नृपति है मोगवै । सनि =शनैश्चर । चख = आँख | झस्वः -मीन । सुदिन =शुभ धड़ी। सुदेस = सुन्दर देश। काजल शनैश्चर है, आँखें मीन लग्न हैं । (यों इस शनैश्चर और मीन लग्न के संयोग की ) शुम घड़ी में प्रेम की उत्पत्ति हुई है । ( फिर वह प्रेम ) समूचे शरीर रूपी सुन्दर देश को पाकर ( उसका ) राजा बन क्यों न भोग करे ? नोट- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मीन-लग्न में शनैश्चर पड़ने से राजयोग होता है। चितई ललचौहैं चखनु उटि घूघट पट माँह । छल सौं चली छुवाइ कै छिनकु छबीली छाँह ।। १७६ ॥ अन्वय-बूंघट-पट माँह डटि ललचौहैं चखनु चितई । छबीली छल सौं छिनकु छाँह छुवाइ कै चली। चितई = देखा । ललचौहैं = मन ललचानेवाले । चखनु = आँखें। छिनकु -एक क्षण । छाँह =छाया, परिछाई। चूँघट के कपड़े के भीतर से डटकर-निःशंक होकर-( उसने ) लुमावनी