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बिहारी-सतसई
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ढीठ्यौ दै=ढिठाई से। पौढ़-बिलास=प्रौढ़ा के समान हावभाव। अपोढ़=अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा नहीं, नवोढ़ा। चलत न पिय नयन=नायक की आँखें चंचल नहीं होतीं, स्थिर होकर देखती हैं। छकए=शराब पिलाना। छकी=शराब पिये हुई, मदमस्त। नवोढ़ा=नवयुवती।

ज्यों-ज्यों ढिठाई से बोलती और हँसती है, प्रौढ़ा न होने पर भी-- पूर्णवयस्का न होने पर भी--प्रौढा का-सा हाव-भाव (दिखला रही) है, त्यों-त्यों प्रीतम (नायक) की आँखें नहीं चलती हैं--एकटक उसकी ओर देखती रहती हैं; (मानो शराब पीकर उस) मदमस्त नवयुवती ने (उन्हें भी शराब) पिला दिया हो।

सनि कज्जल चख झख-लगन उपज्यौ सुदिन सनेहु।
क्यौं न नृपति ह्वै भोगवै लहि सुदेस सबु देहु॥१७५॥

अन्वय--सनि कज्जल, चख झख-लगन-सुदिन सनेहु उपज्यौ। सबु देहु सुदेसु लहि क्यौं न नृपति ह्वै भोगवै।

सनि=शनैश्चर। चख=आँख। झख=मीन। सुदिन=शुभ घड़ी। सुदेस=सुन्दर देश।

काजल शनैश्चर है, आँखें मीन लग्न हैं। (यों इस शनैश्चर और मीन लग्न के संयोग की) शुभ घड़ी में प्रेम की उत्पत्ति हुई है। (फिर वह प्रेम) समूचे शरीर रूपी सुन्दर देश को पाकर (उसका) राजा बन क्यों न भोग करे?

नोट--ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मीन-लग्न में शनैश्चर पड़ने से राजयोग होता है।

चितई ललचौहैं चखनु उटि घूँघट पट माँह।
छल सौं चली छुवाइ कै छिनकु छबीली छाँह॥१७६॥

अन्वय--घूँघट-पट माँह डटि ललचौहैं चखनु चितई। छबीली छल सौं छिनकु छाँह छुवाइ कै चली।

चितई=देखा। ललचौहैं=मन ललचानेवाले। चखनु=आँखें। छिनकु=एक क्षण। छाँह=छाया, परिछाई।

घूँघट के कपड़े के भीतर से डटकर--निःशंक होकर--(उसने) लुभावनी