बिहारी-सतसई । छबीले लाल की-रसिया श्रीकृष्ण की-अँगूठी नवीन प्रेम में ( उपहार- स्वरूप ) पाकर (वह) स्त्री ( उसे) चूमती है, देखती है, छाती से लगाकर पहनती है और उतारकर रखती है-पगली-सी ये सारी चेष्टाएँ कर रही है। थाकी जतन अनेक करि नैंकु न छाति गैल । करी खरी दुबरी सुलगि तेरी चाह चुरैल ॥ १८० ॥ अन्वय-अनेक जतन करि थाकी नैंकु मैल न छाडति । तेरी चाह चुरैन सुलगि खरी दुबरी करी। नेकु = जरा, तनिक । गैल: = राह । खरी=अत्यन्त । सु लगि= अच्छी तरह लगकर। अनेक यत्न कर-करके थक गई, (किन्तु ) जरा भी राह नहीं छोड़ती-पिंड नहीं छोड़ती-छुटकारा नहीं देती । तेरी चाह-रूपी चुडैल ने अच्छी तरह लगकर उसे बहुत ही दुबली बना दिया है। उन हरकी हसि के इतै इन सौंपी मुसुकाइ । नैन मिलें मन मिलि गए दोऊ मिलवत गाइ॥ १८१ ।। अन्वय-उन हँसिकै हरकी, इतै इन मुसुकाइ सौंपी। गाइ मिलवत नैन मिलें दोऊ मन मिलि गए । हरकी = हटकी, रोका । इतै=इधर । मिलवत=मिलाते समय । उन्होंने - श्रीकृष्ण ने-हँसकर मना किया ( नहीं, मेरी गायों में अपनी गाय मत मिलायो ), इधर इन्होंने-श्रीराधिका ने-मुस्कुराकर सौंप दी ( जो मेरी गौएँ, मैं तुम्हींको सौंपती हूँ ), यों गायों को मिलाते समय आँख मिलते ही दोनों ( राधा-कृष्ण ) का मन भी मिल गया । फेरु कछुक करि पौरि तैं फिरि चितई मुमुकाइ । आई जावनु लेन तिय नेहैं गई जमाइ ॥ १८२ ।। अन्वय-कछुक फेरु करि पौरि नै फिरि मुसुकाइ चितई । तिय आई जावनु लेन गई नेहैं जमाइ । फेरुः = बहाना । पौरि= दरवाजा, ड्योढ़ी। चितई = देखा । जावनु = वह थोड़ा-सा खट्टा दही, जिसे दूध में डालकर दही जमाया जाता है ।