पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/९७

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7 सटीक : बेनीपुरी घैरु =निन्दा, चबाव । तऊ=तो भी। समुझि = जान-बूझकर । उहीं = उसी ( नायक के घर को)। घर-घर में निन्दा (की चर्चा) चल रही है-सब लोग निंदा कर रहे हैं- तो भी वह घड़ी-मर के लिए (अपने ) घर में नहीं ठहरती । जान-बूझकर उसी ( नायक ) के घर जाती है, और भूलकर भी उसीके घर जाती है (प्रेमांध होने से निन्दा की परवा नहीं करती)। डर न टरै, नींद न पर हरै न काल विपाकु । छिनकु छाकि उछकै न फिरि खरौ बिषमु कवि-छाकु॥ १९४ ।। अन्वय-डर टरै न, नींद न परै, काल -बिपाकु न :हरे, छिनकु छाकि फिरि न उठकै छवि-छाकु खरौ विषमु । काल बिपाकु =निश्चित समय का व्यतीत हो जाना। छाकि =पीकर । उछकै = उतरै । फिरि = पुनः । खरौ=अत्यन्त । विषमु = विकट, विलक्षण । छबि = सौंदर्य । छाक = मदिरा, नशा । डर से दूर नहीं होता, नींद पड़ती नहीं, समय की कोई निश्चित अवधि बीतने पर भी नष्ट नहीं होता। थोड़ा-सा मी पीने से फिर कभी नहीं उतरता। ( यह ) सौंदर्य का नशा अत्यन्त ( विकट या) विलक्षण है। नोट-नशा डर से दूर हो जाता है, उसमें नींद भी खूब आती है, तथा एक निश्चित अवधि में दूर भी हो जाता है। किन्तु सौंदर्य (रूप-मदिरा ) के नशे में ऐसी बातें नहीं होती। यह वह नशा है, जो चढ़कर फिर उतरना नहीं जानता। झटकि चढ़ति उतरति अटा नैंकु न थाकति देह । भई रहति नट को बटा अटकी नागर नेह ।। १९५ ।। अन्वय-फटकि भटा चढ़ति उतरवि, देह नैं कु न थाकति । नागर नेह अटकी नट की बटा मई रहति । झकि = झपटकर । अया= कोठा, अटारी । नैंक = जरा। अटकी = फँसी हुई । नागर = चतुर । नेह= प्रेम । बटा=बट्टा । झपाटे के साथ कोडे पर कती और उतरती है। (उसकी) देह (इस