घैरु=निन्दा, चबाव। तऊ=तो भी। समुझि=जान-बूझकर। उहीं= उसी (नायक के घर को)।
घर-घर में निन्दा (की चर्चा) चल रही है--सब लोग निंदा कर रहे हैं-- तो भी वह घड़ी-भर के लिए (अपने) घर में नहीं ठहरती। जान-बूझकर उसी (नायक) के घर जाती है, और भूलकर भी उसीके घर जाती है (प्रेमांध होने से निन्दा की परवा नहीं करती)।
डर न टरै, नींद न परै हरै न काल बिपाकु।
छिनकु छाकि उछकै न फिरि खरौ बिषमु छबि-छाकु॥१९४
अन्वय--डर टरै न, नींद न परै, काल-बिपाकु न हरे, छिनकु छाकि फिरि न उछकै छवि-छाकु खरौ विषमु।
काल बिपाकु=निश्चित समय का व्यतीत हो जाना। छाकि=पीकर। उछकै = उतरै। फिरि=पुनः । खरौ=अत्यन्त। विषमु=विकट, विलक्षण। छबि=सौंदर्य। छाक=मदिरा, नशा।
डर से दूर नहीं होता, नींद पड़ती नहीं, समय की कोई निश्चित अवधि बीतने पर भी नष्ट नहीं होता। थोड़ा-सा भी पीने से फिर कभी नहीं उतरता। (यह) सौंदर्य का नशा अत्यन्त (विकट या) विलक्षण है।
नोट--नशा डर से दूर हो जाता है, उसमें नींद भी खूब आती है, तथा एक निश्चित अवधि में दूर भी हो जाता है। किन्तु सौंदर्य (रूप-मदिरा) के नशे में ऐसी बातें नहीं होती। यह वह नशा है, जो चढ़कर फिर उतरना नहीं जानता।
झटकि चढ़ति उतरति अटा नैंकु न थाकति देह।
भई रहति नट को बटा अटकी नागर नेह॥१९५॥
अन्वय--फटकि अटा चढ़ति उतरति, देह नैंकु न थाकति। नागर नेह अटकी नट की बटा भई रहति।
झकि=झपटकर। अया=कोठा, अटारी। नैंकु=जरा। अटकी=फँसी हुई। नागर =चतुर। नेह=प्रेम। बटा=बट्टा।
झपाटे के साथ कोडे पर कती और उतरती है। (उसकी) देह (इस