पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१०१

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२० बिहारीबिहार ।। । नहिँ अन्हाय नहिं जाय घर चित चिहुट्यो ताकि तीर । :::: परसि फुरहरी लै फिरति बिहँसात धसति' न नीर ॥५३॥ विहँसति धसति न नीर नन्दसुत को मुख हेरति । लेइ बलैया बहुरि ब- । हुरि उत ही दृग फेरति । हरिकर बिकि सी गई प्रेमबस भई छनक महिँ । यास गूजरि सुकबि जाय घर नहिँ अन्हाय नहिं ॥ २२ ॥ चितई ललचाहें चखनि डटि पूँघट पट माहिँ ।। छल स चली छुवाय कै *छनक छबीली छह ॥ ५४॥ छनक छवीली छाँह कुंवत मटकत नखराली। बसन झपट्टा देत झमकि झमकत गरबीली ॥ केसकुसुम, बरसाई फिरी पुनि रुकि कै सॉहैं। सुकबि हिँ लखि विकि गई नारि चितई ललच ॥ २३ ॥ है ,

  • लाज गही बेकाज कत घेरि रहे घर जाहि।
  • गोरस चाहत फिरत हो गोरस चाहत नॉहिँ ॥५५॥

गोरस चाहत नाहिँ याहि स हँसत छन हिँ छन । लखत तिरीछे नैन फेरि मुख होत मुदितमन ॥ सूधी है ब्रजगैल जाहु देखहु निज काजा । नाहिँ करत तुम हाय स्याम सुकवि हु की लाजा + ॥ ८४ ॥ सत्र ही हूँ समुहाति छन चलति सबनि ६ पीठ। वा ही तन ठहराति यह *किबलनुमा लौं दीठ ॥ ५६ ॥ किबलनु ल दीठ फिरत ताहीं दिल धावत । हटत हटाये नीठ तऊ

  • ० छनक = छन एक (दो० ४८ की टिप्पणी में इस प्रयोग का विशेष बर्णन है)। * यह दोहा
  • अनवर चन्द्रिका में नहीं है। है गोरस = इन्द्रियाराम और दूध + स्वर वृद्धि से कुण्डलना है।।
  • किनुमा = उत्तरवाली सूई = कम्पासनासह

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