पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१३२

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विहारविहार ।। ४९० पुनः । आये वनमाली नहिँ वात बना ली खाली । टाली काली रैन निराली । लाह कोउ ग्वाली ॥ देखी भाली ताली देइ उड़ावत ख्याली । सुकवि रंग- राली भ्रमराली भई नभलाली ॥ २०१॥ झुकि झुकि झपकैहिँ पलन फिर फिर जुरि जमुहाय । | जानि पियागम नींद मिस दी सब सखी उठाय ॥ १५३ । दी सर्व सखी उठाये अलस के अङ्गन भारी । बार बार मलि नैन चजा- वत चुटकी प्यारी ॥ हरि ही के रँग रँगी भापि कै चातें रुकि रुकि । कीनो सुकवि इकन्त नींद के व्याजन झुक झुकि ॥ २०२ ॥ ज्य ज्यूँ आवत निकट निस त्यौं त्याँ खरी उताल।। झमक झमक टहलें करे लगी रहँचटे बाल ॥ १४ ॥ लगी रहँचटे वाले आरसी मैं मुख पेखति । काजर अलक सँवारि द्वार- दिस पुनि पुनि देखति ॥ सुकवि सँवारत सेज अतर अरु पान सजावत ।। । त्यों त्यों बढ़त उछाह निकट निसि ज्या ज्या आवत ॥ २०३ ॥ | फूली फाली फूल सी फिरति *जो विमल विकास । | भोरतरैया हाँहि ते चलत तोहि पियपास ॥ १५८ ॥ चलत तोहि पियपास सौतिमुख पारे व्हॅहैं । नैन हुलास विकास भरे ते । ऊ मुरझैहें ॥ नंदनन्दन के हीय सरस सरसैहै आली । सुकवि संक तजि | अली चली चलु फूलीफाली । २०४ ॥ .... . | जो भात ।