विहारीविहार ।। जुवति जोन्ह मैं मिलिगई नेक न होति लखाई । । सोधे के डोरे लगी अली चली सँग जाइ ॥ १६० ।। • अली चली सँग जाइ सुनत कछु कछुक पगाहट । कान लगाये सुनत कलुक चूरिन की आहट ॥ भूमि परयो आकार लखात कबहुँक छाया को । सुकवि अली याँ जाति लखी नहिं पति जुवति जो ॥ २० ॥ .. . . । । .. । --
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- -*-* निसि अँधियारी नील पट पहिरि चली पियगेह। कहाँ दुई क्यों दुरै दीपसिखा सी देह ॥ १६१ ॥ दीपसिखा सी देह देतात चन्दकला सी। कनकभरन हू की चमकन
- त्या चपला सी ।। चहुं दिसि फैल्यो पुनि निसास को सौरभ भारी । सुकवि
। दुरै क्यों दीपति है जउ निसि अँधियारी ॥ २१० ॥ | अरी खरी सटपट परी विधु आधे मग हेरि । सङ्ग लगे मधुपन लई भागन गली अधेरि ।। १६२ ॥ भागन गली अंधेरि लई तऊ छिपे न गोरी । बगराये सब चार गाँठ । जूरी की छोरी ।। सुकवि मलत कुच सृगमद, ले अंग अंग घरी घरी । अलि- - कुल घरी छिपी किहूँ किहुँ विधि अरी खरी ॥ २११ ॥
- मिस ही मिस आतप दुसह दई और बहकाय ।
| चले ललन मनभावति हिँ तन की छाँह छिपाय॥१६३।। तन की छह छिपाय चले दीने गलवाँहाँ । मधुर मधुर अलपत हँसत
- पुनि छन छन माहीं । छियो पितम्बर धूप माँहि भयो एक ही सरिस ।
१ सुकवि साँवरी छाया में मिलिगई मिस ही मिस ॥ २१२।। • यह दा, देश के नन्दन टीका में नहीं है।
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... 44.. 4544 , , 54 ॥ -*
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