पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४७

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बिहारीबिहार । . रमन कह्यौ हँसि रमनि स रतिबिपरीतबिलास।... चितई करि लोचन सतर सगरब सलज सहास ॥ २१० ॥ सगरव सलज सहास दृगन पिय को चित चोरयो । बिन ही ऊतर दिये चित्त को संसय तोरयो । सुकबि पीय की आस बढ़ी मन गयो हुलास बसि। बलिहारीं बलिहारी' एतोरमन् कह्यो हँसि ॥ २६१ ॥ .. ." प्रीतम हग लिहिँचत प्रिया पानिपरससुख पाय। जानि पिछानि अजान लौं नेक न होति जनाय ॥२११॥ नेक न होति जनाय रोकि उमॅगन जनु राखति । सुरभङ्ग हु की सङ्का करि कछ हृ नहिँ भाषति ॥ जिय हिय मैं धरि ध्यान सबै नासत दुख ही- तम® । सुकबि सेद कर लगें हीये की जानी प्रीतम ॥ २६२॥ | सरस सुमिल चिततुरंग की करि करि अमित उठान । गोइ निबाहे जीतिये प्रेमखेलचौगान ॥ २१२ ॥ प्रेमखेलचौगान चाहचाबुक चटकावहु । लाजलगाम हिँ गहहु तऊ ढीली ढुरकावहु ॥ कोटि चबावन सह अहै नहिँ सूधी चौसर । सुकबि चहहु । जीतन तौ धावहु लखि कै औसर ॥ २६३ ।। दृग मचत मृगलोचनी भयो उलट भुज बाथ। जानगई तिय नाथ को हाथपरस ही हाथ ॥२१३॥ | हाथ परस ही हाथ नाथ को तिय पहिचानी।सद कम्प रोमञ्च ततच्छन । लच्छन जानी ॥ आनंदविन्दुन रही उमॅगि पिय को हिय साँचत । बरसि परी जनु सुधा सुकबि स्यामादृग मचत ॥ २६४ ॥

  • हृदय का तमस्वरूप दुःख । * यह दोहा कृष्णदत्त की टीका में नहीं है । (तात्पर्यं) अनुराग

पूर्वक उत्तम मेल करके चित्तरूप घोड़े के भौति “ति के धावे करके गेंद के निबाने से अथवा छिपा । के निवारने से प्रेम खेल का मैदान जीता जाता है। इसका अनुवाद हरिप्रसाद ने यों किया है ।“अः ।' बेन मिलित चित्तः सरसं चोत्यानममितमपि कृत्वा । चतुरस्ने, खेलस्त्वं निर्वाहय गोलक एम्” ।:::