पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१६२

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चिहारविहार। । ७६ जनु हमें बधाई ॥ ऐसे निघरघट्न स सुकवि तजे हम चैन । मानस मान । न जासु ज्ञासु ने ना केछ नेना ॥ ३१६ ॥ . ... .। | =

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| ढरे द्वार तेहीं ठरत दूजे ढार ढर्रे न्।....। क्यूँ हूँ आनन आन सौं* नै ना लागत नैन* ॥२६३॥ | लागत नैन न कोऊ स पुनि पुनि उत हेरें । किये केटि हूँ ज़तनन रुख वाही दिस फेरै ॥ मूंदे हु ताही लखें खुले व्है देखत नित जहिँ । कहो कोऊ कछु सुकवि रहें ये ढरे डार तेहिँ ॥ ३२० ॥

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= 23534 | कहत सबै कवि कमल से मो मत नैन प्रषान । । नतरक कत इन विय लगत उपजत विरहक़सान ।। २६४।। उपजत विरहक़सान नैन स नैन भिरत जव । घरहाइनि पै चोट करत घवराइरही सन ।। इन के बोझन भरत सौति गई उतरि वदनछवि । सुकवि व्यर्थ इन दृगन कमल से कहत सबै कवि ।। ३२१ ।। -4544, 4 44 =)*2. 41- + साजे मोहनमोह के मो हीं करत कुचैन ।। कहा करों उलटे परे टोने लोने नैन । २६५ ।। | टोने लोने नैन हहा ये हीय दहते हैं । तकि तकि गोकुलगैल नीरनद उमॅगि चहत हैं । लगत रैन नहिँ छनक लगे उनस विनु काजे । सुकवि मोह सत्र तजे माह मोहन को साजे ।। ३२२ ।। - - 4 | 1 ४ नं २ गत नैन : झुक में नहीं लगती ग्रारदै । * *नैना लागत ई न" हरिप्रकाश । ५ः न हो वा इमने कोई तर्क नहीं है । नातर == नहीं हो ( राजपुतानी } -- यह हा अरन्ट्रि में भी है ।।