पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२००

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' । विहारविहार ।

  • करि राख्यो निर्धार यह मैं लखि नारीज्ञान ।।

| वह वेद औषधि वहै वह ई रोगनिदान ।। ३९५६ ॥ | वह ई रोगनिदान जासु विनु हे वियोगजर । वह ई है पुनि बैद आइ गहि याको कर ॥ वह ई औषध अहें मैनधन्वन्तरि भाष्यो। वहै अहे अनु- पान सुकवि निहँचै करि राख्यो ॥ ४७० ॥ नेह कियो अति डहडह्यो विरह सूखाई देह।। जरे जवासी ज्यो जमैं जैसे बरसे मेह ॥ ३९६ ॥ जैसे बरसे मेह धान जो अति लहराईं । तऊ जवासे सुखि सूखि अंग । अंग सिकुरावें । मैन वान वरसाय जराई अझलता मति । सुकवि रसाल । रसाल डहडसे नेह किया अति ॥ ४७१ ॥ | कहा भयौ जो बिछुरे हू मोमन तोमन साथ । उड़ी जाति कित हूँ गुड़ी तऊ उड़ायकहाथ ॥ ३९७ ॥ | तऊ उड़ायकहाथ गुड़ी को एक अधारा । मेरे चित की डोर अहे तुअ कर निरधारी ।। मारहु चहै जियावहु कीजै मन हिँ यो जो । सुकवि चले नहिँ मामन चिरे कहा भयो जो ॥ १७२ ॥ 5 बिरहावथाजलपरस चिन वासियत मोहियताल। कछु जानत जलथभविधि दुर्बोधन लें लाल ।। ३९८ ॥ ६ बर: थY मोठा है परन्तु कुण्डलिया के लिये उलट के लिम्वा हैं । इस पर हरिप्रसाद पण्डित

  • नं ४ मा नि । “हा माजाने निश्चित्य स्थापितं मया चैतत् । तदेव रोगनिदानं भवति तदीपधं ।
  • एङ्ग [५५' है इम में विषम में जगञ्ज़ हैं तथा सप्तगण विभाग में वैषम्य है अतः छन्दोमः । । ।

• श भई प्रों में मोरटा है परन्तु कुन्निवा के सुमत के लिये यहा उलट के दोई के अ कार । ५ र ६ । धान? अरमन में अवामा सु ता ३ छ । जमता है, ऐमो दिरद ने देश की सुखाया

  • * * * हद विा ६ : प्रम देर रमानच । । । टोहा अनवरचन्द्रिका में न है।।
  • *म में या झी अन बनाया झी मीनिङ्ग को पंक्ति में पक अनुचित हैं। यदि "वि

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