पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२१७

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बिहारीविहार। । रह्यो खिलाई ॥ लिये अधर विद्रुम सुतुही मैं हासदूध सखि। जगर मगर है।

  • रह्यो सुकवि प्यारो तियमुख लखि ॥ ५३५॥ ..
  • भाल लाल बँदी दिये छुटे बार छवि देत ।

| गह्यो राहु अति आह करि मनु ससि सूर समेत ॥ ४४९॥ | मनु ससि सूर समेत आजु राहू धरि पायो। जनु मुकताहल व्याज चहत उडुनिकर छुड़ायो ॥ सारी सित चाँदनि हुँ सुकबि मानहुँ इहि काला । घेरि । राहु काँ रही सखी लखु ती के भाला ॥ ५३६ ॥ . *मिलि चंदनबँदी रही गोरे मुख न लखाय । ज्य ज्यों मदलाली चढ़े त्यौं त्यों उघरति जाय ॥ ४५० ।। त्याँ त्यों उघरति जाय बदन ज्य होत गुलाबी । बॅदी के मोतिन की दुति । । अब दवत न दाबी ॥ बेसरमानिक लखि ने परत यों रंग रह्यो रिलि । सुकवि गुलाला बीच वधूटी सरिस गयो मिलि ॥ ५३७ ॥ .. ससिमुख केसर आड़गुरु मंगल बिदुरीरंग । रसमय किये लोचन जगत इक नारी हि संग ॥४५१॥ इक नारी लहि सङ्ग जगत रसमय करि दीनो । देखे अनदेखे हु कपोल : मोती पर कहा है ) । अथवा पौराणिक मत से बुध का जो रङ्ग हो परन्तु यदि पूर्णिमा को पूर्ण चन्द्र की गोदी में अवें तो जैसे सूर्य के प्रकाश से सव ग्रह चमकते हैं वैसे बुध भी चमकैहोगा ।।। ॐ चन्दन की बेंदी = चन्दनविन्दु ॥'

  • यह सोरठा है परन्तु कुण्डलिया के लिये दोहे के क्रम से रख लिया है चन्द्र गुरु मङ्गल का एक

राशि पर होना जलयोग है। नारी = राशि अथवा काल का प्रमाण विशेष, एक पक्ष में नारी = स्त्री.॥

  • रस =जन्न अथवा शृङ्गाररसे ॥ देख़ने से आनन्शु न देखने से शोकाचु ॥", :.:..::.;