पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२१९

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बिहारीबिहार। रससिँगार मञ्जन किये कञ्जनभजन दैन । अञ्जनरञ्जन हू बिना खञ्जनगञ्जन नैन । ४५५ ॥ खञ्जनगञ्जन नैन निरखि छकि गयो निरञ्जन । वरनन करिवे परे सुकवि केते ससपञ्जन । विधि जनु इनमैं दियो अहै निज गुन को सरबस । अहें। हठीले चटकीले सब बिधि पूरे रस ॥ ५४३ ॥

  • अरतें टरत न घर पेरे दई मरक जनु मैन ।

| होड़ाहोड़ी बढ़ि चले चित चतुराई नैन ॥ ४५६ ॥ चितचतुराई नैन सैन की पुनि चतुराई। दोउन जनु नित नित बढ़िवे ।

  • की होड़ लगाई । कोटि कोटि ही कला रचत अरुझी नटवर हूँ । सुकबि

- न पाछे हटत अरि रही दोऊ अर तें ॥ ५४३ ॥ जोगजुक्ति सीखहिँ सबै मनौ महामुनि मैन । चाहत पिय अद्वैतता कानन सेवत नैन ॥ ४५७ ॥ कानन सेवत नैन पुलक की सेली धारे। काजर स जनु कृष्णसारमृगचर्म पुसारे ॥ भृकुटिकुटी के तेरें बैठ कर लई मुक्ति सी । सुकवि रसीले नैन् । करत हैं ज़ोग जुक्ति सी ॥ ५४५ | - खेलन सिखए अलि भले चतुर :+अहेरी + मार।। काननचारी नैनमुग नागर नरन शिकार ॥ ४५८ ॥ नागर नरन सिकार करत कहुँ पकीर परै ना । चञ्चलता स भरे तऊ डटि

  • ० इसका श्रेर्थ लल्ललाल यो” लिखते हैं। सखी का बचन नायक से कै सखी सखी से कहै नायकानव

चोबना । जिद से टलते नही न बढ़ निकल दिया है सनकार के मानौ कामदेव ने । होड़ा होड़ कर

  • वट्ट चले हैं चित चतुराई औ नैन ४ . यह दोहा हरप्रसाद के अन्य मे नही है । वैदेसिकारी । + काम है।