पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहारविहार ।. . .। । विधि की समुझावटः ॥ सवै इसारे रचत खुसी अनखे अरु रूठे। सुकवि सधैं हैं सही होत कब हूँ नहिँ झूठे ॥ ५४९ ॥ ....

  • दृगनि लगत बेधत हियौ बिकल करत अंग आन ।

ये तेरे सब तें विषम ईछन तीछन बान ॥ ४६२ ॥ ईछन तीछन बान बिना गुन धू धनु छूटत । रुकें न रोके किहूँ लगत ही सुधि बुधि लूटत ॥ अति जहरीले जुलुम करत चञ्चल ज्यौं चनमृग । सुकवि रोम सगवगत मिलत ही छन हूँ दृग दृग ॥ ५५० ॥ | फिरि फिरि दौरत देखियंत निचले नेक रहूँ न ।..... ये कजरारे कौन पर करत कजाकी नैन । ४६३ ॥ करत कजाकी नैन कौन पै करि करि छल बल । कोर कटाछन हनत है। रहे अति सै चञ्चल ॥ देइ सुधा की लालच जनु बिष स हिय बोरत । सु। कवि किहूँ थिर होइ छनक मैं फिरि फिरि दौरत ॥ ५५१ ।। ।। सारी डारी नील की ओट अचूक चुकैन । मो मनमृग *करबर गहै अहे अहेरीनैन ॥४६४॥ नैनकल जनु नल नल पुनि सारी डारी। काजर को सँग दियो सकै पुंनि कौन निहारी ॥ सङ्गी करयो अनङ्ग अलख पुनि बानकतारी। इनके करतच सुनत सुकवि सुधि सबै विसारी ॥ ५५२ ॥ . नीची यै नीची निपट दीठि कुही ल दौरि। .. . उठि ऊँचे नीचे दियौ मनकुलंग झकझोरि ॥ ४६५। ।

  • * करवर == हाथों हाथ (लल्लूलाल) ॥ ‘सारी टाटौ नौल को अच्छा पाठ होता ॥ अहेरी भी नौल, टाटी।
  • भी नील साथी अनङ्ग, वाण अंलक्ष्य सभी अपूर्व हैं इससे सुधि बुधिं विसरी । यह कुण्डलिया का तात्पर्य हैं
  • है ! * यह दोहा कृष्णदत्त कवि के ग्रन्थ में नहीं है। कुही = बाज। कुलङ्ग = गौरैया (सं०)कलं विङ्कः ।