पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२२९

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433443,44444444444; बिहारबिहार । | मूर खोइबे ॥ कैध लज्जित होइ देत है प्रान हठीलो। सुकवि किधौं अञ्चल । ओटनि मुख छप्यो छबीलो ॥ ५८१ ॥ .. : : :... जरीकोरे गोरे बदन बढी खरी छबि देख । .. . लसति मनो विजुरी किये सारदससिपरिवेखं ॥ ४९१ ।। सारदससिपरिवेष किये विजुरी जुरि राजै । अतिसै थिर है रही कुरता तजि । जनु भ्राजै ॥ मोती तारे जुरे सुकबि सोभा कॅरी खरी। लता ओट स लखहु तिया सोहति भरी जरी ॥ ५८२॥ १२ : .::::

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| खरी लसति गोरे गरे धसति पानं की पीक । .. मन शुलूबँद लालं की लाल लाल दुति लीक ॥ ४९२ ॥

  • :- लाल लाल दुति लीक लसै गुलबन्द लाल की। ध रोरी को तिलक लसै

यह ग्रीव बाल की ॥ ग़रे परयो, अनुराग किंधे तिहिँ क़ी. छटा भरी।सुकवि

  • सुकोमल अङ्ग लुनाई लसति अतिखरी ॥ ५८३ । ।

पहरत ही गोरे गरे य दौरी दुति लाल। मन परासि पुलकित भई मौलसिरी की माल ॥ ४९३ ॥ | मौलसिरी की माल परसि तुमक जनु परसी । कञ्चनअङ्ग रोमन सोही सदन सरसी ॥ कछुक कॅपी कछु कैंपी छटाकि छाई छवि छहरत । सुकवि न- । वेली तिया और ही व्है गई पहरत ॥ ५८४ ॥ बड़े कहावत आप हू गुरुवे गोपीनाथः।। ::::::: तौ बदिह जौ राखिहौ हाथन लखि मन हाथ ॥४९४ ॥ हाथन लखि मन हाथ राखिहाँ जो मनभावन। चूर नं है हो चूरी लखि । --- -- -- - --


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