पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२३०

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चिहारविहार।। चितचोर सुहावन ॥ रागी व्हेहो नाहिँ राग मैंहदी जिय आवत । सुकवि जान । हों में हूँ साँचे बड़े कहावत ।। ५८५ ॥ :: :: : : :: 4444444444444441414141414141 | वेई कर व्यौरान वह व्यौरी कौन बिचार । जिन हीं उरझौ मो हियो तिन ही सुरझेवार ।। ५९५॥ तिन हीं सुरझे वार जिन हिँ उरझ्यो म हियरो। तिन हीं छूटे होस जिन । हिँ बाँध्यो मो जियरो ॥ तिन हीं जोरयो नेह जिन हिँ तोरयो धीरज चर।। सुकवि समुझि नहिँ परत करत है. विधि वेई कर ।। ५८६ ।। गोरी छिगुनी नख अरुल छला स्याम छवि देइ ।... | लहत मुकति रति छनिक यह नैन त्रिवेनी सेइ ॥ ४९६ ॥ .. ।

  • सेइ त्रिवेनी कहत कोऊ दृग मुकती पावें । हमरे मत तो नैन मुकति च-
  • हुँघर बगरांवें ॥ आपुन तन्मय होई प्रति इक लहत अथोरी । मुक्ति हु से

वड़ि भक्ति सुकवि जानत नहिं गोरी ॥ ५८७ ॥ | चलन न पावत निगममग जग उपजी अति त्रास ।। कुच उतङ्ग गिरिवर गह्यो मीना मैन *मवास ॥४९७|| मीना मैन मवास कियो रामावलि घाटी । नाभिकन्दरा राक सर्वन ची- रता उपाटीं ॥ दृगसर झुधनु तानि ताहि सों सवन डरावत । किनकफूल सौं हनत सुकवि कोउ चलन न पावत ।। ५८ ॥ · । | राजपुतान में भी एक अति है। ये लोग बड़े दहादुर दहे लुटेरु श्रीर वड़े दिम पात्र होते

  • १४ भिर ३ कि मोरात्र जैपुर की प्राचीन जाहिरात का माना इमी ति के प्रबन्ध मे रहित

| ‘अनल में इनत'कन कभू, एक पक्ष में कनकफूल धतूरे का फूल । ( अर्थात्