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बिहारी बिहार ।

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| बिहारीबिहार ।। छाले परिवे के डरन सके न हाथ छुवाई। ... । झझकति हिये गुलाब के झबा झवावति पाइः॥५३९॥ · । पाइ निकट ल लाइ लाइ पुनि दूर हटावति । चहुँ घुमाइ विलोकि विचारति पग न छुवावति ॥ पुनि पुनः पखुरी लखीत लगी बहु संसय करिवे । सुकवि रखात गहि गहि, कर लार्गे छाले परिवेः ॥ ६३३ ॥ .:: :: मैं वजी के बार.त' इत कित लात कराट।....... पख़री गरें गुलाब की परि है गात खरौटः॥ ५४०॥ .. | परि है गात खरौट दिनन ल हा हा के है। फूलन हूँ मति छूई कली कोऊ * चुभि जैहै । छाले परि है लैन हिँडोरा डोर हाथ मैं। सुकवि तिलक क्यों देत * रेख परि है जु माथ मैं ॥ ६३४ ॥::::::: ::: :

  • ज्य कर त्यों चुहँटी चलै ज्यों चहुँदा त्यौं नारि । | छबि स गति सी लै चलति चातर कातनं हारि ॥४१॥ ... | चातुर कातनहारि चारु चरखाहिँ चलावति । तेहिँ सँग बूंघट नथ झुलनी झुमकान हिलावति ॥ सँग सँग नैन नचावाति लरकावृति मोती लर । सुकबि खनकि रही चूरी हू डोलत ज्या ज्यों कर ॥ ६३५॥ ...............

हग थिरकॉहै अधखुले देहः थकौहँ ढारः।:::: .. सुरत सुखित सी देखियत दुखित गर्भ के भार ॥ ६४२॥" दुखित गर्भ के भारं तऊ अति लगत सुहाती। सुन्दर बगरे बार + सीकरन । विन्द नहातीं ।। कबहुँ लजौहें होत कचहुँ तकतीः पुनि सौहँ । सुकविः हँसौहैं। होत कव हुँ दो दृगः थिरकोहैं। ६३६ ॥:. :: :: : : : :: :: :: :: । | वे से पैर धोना कँवाना कहलाता है। चरखे कातने का वर्णन कुछ ग्राम्य दोष है ॥ -