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बिहारी बिहार ।

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44444444444444444444444534344 || बिहारीविहार।। *कहै इहै श्रुति सुस्मृति सो यहै सयाने लोग ।। तीन दबावत निसँक ही राजा पातक रोग ॥ ६०८ ॥ राजा पातक रोग अचानक आइ दबावत । दया नेक नहिँ करत रूप अनुरूप दिखावत । अति जतनन सौं हटत दीन कर देत अङ्ग दुति । सकबि पुरानन इहै कह्यो अरु इहै कहै श्रुति ॥ ७१० ॥ इक भजे चहले परे बूड़े बहे हजार।। किते न औगुन जग करत नै बै चढ़ती बार ॥ ६०९ ॥ नै बै चढ़ती बार महा अन्धेर मचावत । अधिक जोर कै सीम तोर मरजाद बहावत ॥ चक्कर दै परकाज बिगारत दया न रश्चिक । सुकबि लगे इक पार सु गोता खाई रहे इक ॥ ७११ ॥ गुनी गुनी सब कोउ कहत निगुनी गुनी न होत । सुन्यौ कहूँ तरु अर्क तै अर्कसमान उदोत ॥ ६१० ॥ अर्कसमान उदत होत को तरु तै देख्यो । बन्धुजीव पुनि कौन बन्धु को जीवन पेख्यो । अर्जुन तरु हू कहो करी है बानबृष्टि कब । सुकबि नाम हैं। होत कहा अनगुनी गुनी सब ॥ ७१२ ॥ | सङ्गति सुमति न पावहीँ परे कुमति के धंध। | राखो मेलि कपूर में हींग न होइ सुगंध ॥ ६११ ॥ हींग न होइ सुगंध मेलि राखहु बहु केसर । मृगमद हु को पुट दीजै पुनि नीचे ऊपर ॥ सौ सौ धूपन धूपित हू कीजै किन नितप्रति । सुकवि सहज नहिँ गन्ध जाति लहि सुन्दर, सङ्गति ॥ ७१३ ॥ | ४ यह दोहा होणदत्त कवि की टौका में नहीं है ॥ * बन्धुजीव = गुलदुपहरिया ॥ जैसे अधरोऽय ६ मधौराच्या वन्धुजीवप्रभाहरः । अन्यजीवप्रभां हन्त हरतीति किमद्भुतम् ॥ " :