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बिहारी बिहार ।

43444444444444***********44.4.4.4.4.4. बिहारविहार ।। जमकरिमुह तरहर पुरचो इहिँ धरि हरि चितलाई ।.. विषयतृषा परिहरि अर्जी नरहरि के गुनगाई ॥ ६६८॥ नरहरि ॐ गुन गाइ प्रति करि राधाबर स । गिरिधर क उर धारि विहरु नित नन्दकुँवर सौ ॥ रोम रोम मैं र सुकवि रहिहैं तेरे हरि । होइ मुदित सव संसय तजि कै है का जम करि ॥ ७८३ ।। | जप माला छाप तिलक सरै न एकौ काम। मन काँचे नाँचे वृथा साँचे राचे राम ॥ ६६९ ॥ .. : साँचे राचे राम नाम जपि जनम आँवावत । पुलक पसीजत आनंदअँसु- वन देह भिंगावत ॥ सोई साँचे सुकवि लई तिन हीं मृगछाला । मन हरि स । नहिँ लग्यो वृथा तब जप तप माला ॥ ७८४ ॥

  • जगत जनायो जिहिं सकल सो हरि जान्यो नाहिँ ।

ज्य आँखिन सब देखिये ऑखि न देखी जाहिँ ॥६७०॥ | आँखि ने देखी जाहिँ तिन हिँ स सब जग देखहु । कोउ बिधि दर्पन आदि माँहि तिन हूँ कौं पेखहु । हिय प्रतिबिम्बित होइ हरि हु त्याँ परत लखायो । सुकबि कछुक तौ जानि जो ई तोहि जगत जनायो । ७८५ ॥ भजन कह्यो ता तें भज्यो भज्यो न एकौ बार। दूर भजन जो हैं कह्यो सो हैं भज्यो आँबार ॥ ६७१ ॥ सो हैं भज्यो राँवार सजन जेहिँ भजन बतायो । सजन छजन हीं देखि लजन तजि तहँ मँडरायो । सुकबि अजहुँ तो नाथचरन की सीस धारि रज।।

  • एकौ वार हु पागि प्रेम मैं नन्दनँदन भज ॥ ७८६ ॥

यह दोहा शृङ्गारसप्तशती मैं नहीं है औलालचन्द्र ने सं० ७२६ में भी लिखा है वही दूसरी FFFFFF । कुण्डलिया बनी है।