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बिहारी बिहार ।

२१६ | विहारविहार । जगत जनायो जिन सकल सो हरि जान्यो नाहिँ । ज्यों आँखिन सब देखियत आँखि न देखी जाँहिँ ॥ ७२६ ।। ऑखि न देखी जाहिँ जात अनुभव स जानी। इन विन कोउ न होत सितासित रँग को ज्ञानी ॥ ज्ञानरूपं हरि बिना कहो किमि अनुभव आयो । या सों सोई गहहु सुकबि सोइ जगत जनायो । ८५२ ॥ लालचन्द ने इतने ही दोहे रखे हैं। हरिप्रसाद के स्वीकृत दोहे । । ए री दे री स्रवन सुनि तेरी अलक बटेरि । । - चढ़ि ने संकेत है चिंतनटी निपटचीकनी डोरि ॥ ७२७ । । निपटचीकनी डोरि पु ही चित बहकायो । ता पै और फुलेल अतर । हैं चरचि लगायो । ता हू पै इहिँ झलि और हू मोमति घेरी । अलंक हिँ सुकवि बटोरि जाउँ बलि तेरी ए री ॥ ८५३ ॥....., जुरत सुरत के सुरत कै, खिन खिन खरी डेरात । ज्य ज्याँ नायक कमल कों, कमलाइत है जात ॥ ७२८॥ . (अर्थ अस्पष्ट औ अमधुर है ) जे हरि खगपति सीस धर, हर ध्यावत धरि ध्यान । | ते हरि जेहरितर किये, तू राधे करि मान ॥ ७२९ ॥ | मान सुमै ते हरि जहरितर राधे कीने । जिन नरकेहरि दनुज देहरि हिँ दरसन दीने ॥ ॐ हरि हरि कै हहरात सुमिरि जेहिं असुरन मेहरि । बस । करि लीने सुकवि जगत, जाहिर हैं. जे हरि ॥८५४ ॥ ५ ‘हरि हरि' = हा, जैसे जयदेव “हरि हरि हतादरतया सा गती कुपितेव” ।'