पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३३

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भूमिका । ... । आरूढ़ हो बिहारी को ब्राह्मण से क्षत्रियों में उत्पन्न बंश से सम्वन्ध लगाने का मेरा तो साहस नहीं होता ॥ ( मेरे अन्य में इस दोहे पर.की टिप्पणी भी देखिये ) तिस पर भी अन्य भाटों की भांति राजा की विशेष प्रशंसा करना अथवा अप्रसन्न हों तो विशेष निन्दा करना यह बिहारी का भाटों का सा । स्वभाव न था। इनने तो प्रशंसा की परा काष्ठा इतनी ही की है कि-

  • प्रतिविम्वित जयसाह दुति दीपाते. दर्पन धाम।।

सच जग जीतन को किया कायव्यूह जनु कास ॥”. , और निन्दा की भी अवधि इतनी ही की है कि- | . भट भये जयसाह सो भाग चाहियत भाल ।” इन कारणों से बिहारी का पूर्व निर्णयानुसार चौबे होना ही सिद्ध होता है ।। सं० १६४९ में नैनसुख नामक किसी कवि ने एक बैद्यमनोत्सव नामक ग्रंथ बनाया । उसमें वे भी अपने को केशव के पुत्र बतलाते हैं । कदाचित् ये कविप्रियाकार केशव के पुत्र हों । परन्तु वे केशव- दास थे और वे अपने पिता को केशवराज लिखते हैं । तथा इनको कविता भी अप्रौढ़ है। कदाचित् दुसरे केशव के पात्र हों यह भी सम्भव है। इनने यों लिखा है। छ वैद मनोत्सव ग्रन्थमहिं कहूँ सकल निज अनि (स) । दुख कन्दन फुान सुख करन आनँद परम हुलास ॥ २५ ॥ केसव राज सुत नयन सुख कियो ग्रन्थ अमृत कंद ।। सुभग नगर सियहनंद में अकबर साह मरंद ।। २६ ॥ . अंक वेद इस मेदिनी सुकल पछि रनि मेदिनी । चैतमास तिथि दुतिया वार भृगु उनि पछि चन्द्रसुप्रकास ॥ २७ ॥ मात्रा अंक छन्द पुन कह्यो अल्प मति सोइ । . गुनि जन सकल सवारियो हीन जहां कछु होइ ॥ २८ ॥ कीयो मथन करि औषदी रोग निदान फुनि सकल सुधासम ग्रन्थ ।। कह्यो समुझि आदिअंत याह इति श्रीग्रन्थं मनोत्सव वैद्यमनोत्सवे ग्रंथ ॥ संपूर्ण समाप्तं ॥ जैरी इंनने अपने पिता को कैशव राज लिखा है वैसाही विहारी ने केशवराय लिखा जान पड़ता है।

  • ० यह लेख वाचू. राधाकृष्णदास जी से मिला है जिसका उन्हें धन्यवाद है ॥