पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७५

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लै सुकलादिक मास को पूरी गनना ठानि ।। सिड करौ छठ सोम को सुकवि भूमिका मानि ॥७॥ रह्यौ विहारीवंस पै झगरो अतिहि प्रसिद्ध । सुकवि मिटायो सोउ कियो चौबे वंस सुसिद्ध ॥८॥ भिन्न २ टीकान के क्रम मैं हैं,अति भेद ।। यामों टीका खोज, मैं होत हतो अति खेद ॥ ६ ॥, .. ..। अतिहि परिश्रम के सु कबि ति ले कक्रमन के अंक । सव दोहन के नाम है लिरिव दीने निःसंक ॥१०॥ अहै कहां को दोहरा कौन न मान्यो कौन। । दर्पन सो सव प्रगट भी उड़िगी संचय जौन ॥११॥ :: :: :::: ललित भूमिका को भयो एक दूसरो ग्रंथ । . : .. कवि के जीवनचरित की सकवि चलायो पन्थ ॥१२॥ कोसलेस महराज धनि जिनको अाश्रय पाई । सुकवि व्यास या ग्रन्थ कों” प्रगट कियो चित लाई ॥१३॥ जौली कविजन के हिये रस को रहै हुलास ' । । तौलौं जगं या ग्रन्थ को दूनों बढ़ प्रकास ॥ १४ ॥ .. । क बित्त । . . दोहा की सु जग में प्रसिद्ध सतसई ज़ाको सुकवि बिहारीदास खास रचवैया है । ताकी समता में आज अँखिन विलोक्यो या विहारी को बिहार बौर सँचो कहवैया है । परम रसौली भाव सेदन लसीली जाकी कविता गसीली चार चित्त की हरैया है । मुकवि सुजान जू ने सुकवि सुजान हेतु कुंडल के कौनी था अनूप सतसैया है ॥१॥ । काशीराजाश्रित सौतलाप्रसाद कविकृत । रस की सुमञ्चरौ से दोहा हैं विहारी जू के कृष्ण कवि कौनौ मञ्जताई तास दो गुनी।* सृरति मिसर हाव भाव अलङ्कार सानि महिमा करी है निज कविता से चौगुनी ॥ इरिपरमाद काव्यकला दरसाइ तापै सौतल बखाने मधुराई कीनी नौ गुनी ।

  • ब्यास अम्बादत्त के विहारी के विहार मांहि कुण्डलिया कीनी सतसईसोभा सौगुनी ॥ ६