पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५७

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। भिका। .... भूमिका।। इस लेख के देखने ही से विदित होता है कि १६० वर्ष पहले भी कविसमाज की चाल थी और । उस समय अगरे में कविसमाज हुअा था । पर वह समाज आजकाल के कविसमाज ऐसा सड़ियल न

  • था कि कोरी समस्याओं पर दात खटाखट हो और भले बुरे कवित्तों के कथड़े छपवाना ही बड़ी बहाः ।

दुरी समझी जाये । प्रत्युत उस समाज के काय्य के निदर्शन में यह अपूर्व साहित्य अन्य उपस्थित है ।

  • यह अभी तक कहीं छुपा नहीं है और लिखित भी दुर्लभ है । ( मुझे यह ग्रन्थ पटनानिवासी पण्डित

गोबर्षमनाथ पाठकजी से मिला है जिसका उन्हें धन्य बाद है ।। | यह अमरन्ट्रिका, दोहे सोरठों में टीका है। मैंने इसकी तीन लिखित पुस्तकें देखी हैं। | यह ग्रन्छ प्रसिद्ध ललू लाल कवि के पास था । जब वे कलकत्ते गये तो लाला गुलाबराय औ श्री पृथ्वीधर मिश्र कलकल गये तो चौतपुर में टिके और उनसे यह ग्रन्थ लिया। मैंने जो ग्रन्थ देखा है सो उनी के हार बाजू डोमनसिंह का सं० १८५४ को लिखा है । इस ग्रन्थ के अन्त में यह लेख है। सः । वेद बराच भुजंग सयङ्ग सुअङ्ग मैं संवत चारु बिचारौ । भादव को दसमी गुरुवार भयो सिद्धि जोग सुपच्छ अधा ॥ सूरतिराम कवीस को पन्थ नवीन महाउर आनंदकारी । सो लिखि डोमनसिंह | लयो है हिये पदबन्दि उभौ पियप्यारी ॥ | दो० । नास सरस रसग्रन्थ यह रसमहा अभिरास । जामें रस अति भरिरह्यो कविजन मन बिस्राम ॥ | श्रीवीधर मित्रवर महाराज बर पाई । श्रीयुत राय गुलाब पुनि लाला मिले सहाई ॥ श्रीललू जी की कृपा लग्यो हाथ बिलु प्रास । लिख्यो आदिरस देखि सो चौतपूर करि बास । | जोधपुर के महाराज अभयसिंहजी ने संबत् १७८० से सं० १८०६ तक राज्य किया था। (इतिहास में राजस्थाद) वे बड़े कवि प्रिय थे । प्रसिद्ध कविचारण करणीदानजी ( कर्ण कवि कर्नल जेम्स् टाड़ राज लान ) ने इनके समय में सूर्यप्रकाश” नामक राठौरबंश का इतिहास छन्दोवद्ध बनाया। इने महा । राज अभयसिंहजी ने कविराजा की पदवी दी और लास नामक ग्रास दिया जो अभी तक उनके वंशजों के उपभोग में है । इनी महाराज व दीवान नाडूला भण्डारी अमरेश ( अमरचन्द ) जी थे। उनी की आज्ञा से उनौ के तोषार्थ उनी के नाम से यह छन्दोबद्ध अमरचन्द्रिका नामक बिहारी टीका

  • सुरतिसिश ने बनाई ॥ यह ग्रन्थ भी उसी संबत् १०८४ आश्विन सुदि विजयदशमी गुरुवार को पूरा

इझा धा ॥ दीवान साहबं ने इनको कुलकवि कौ पदवी दी थी । दीवान अमरेश कौ पूर्वजों को नामा- * वल मो इस ग्रन्या के आरम्भ में यों दी है। "स्हारी परसिद्ध जग नाडूला गुनधास । प्रगटे तिहिं कुलदीप ज्यों दीपचन्द इहिँ नाम ॥ तिनके सुत सव कुन संरस रायसिंह विख्यात । प्रगटे तिनके पौवसौ महा सुजस अवदात ॥ जिनको अतुल प्रताप गुन गावत देस विदेस । तिनके परम प्रबीन अति प्रगटे श्रीअमरेस ॥ तिन कवि सूरतमित्र सों” कौनों परम सनेह । सबै भैाति सनमान करि कह्यो यन्यकरि देह ॥