पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६३

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।... भूमिका ।... .

सहज सचिक्कन स्याको रुचि सुचि सुगन्ध सुकुमार । गनत । न मन पथ अपथ लखि विथुरे सुथरे बार ' विथुरे सुथरे, बार निरखि नागरि नवला के । भ्रमत भंवर वहु विपिन बनक बरनत कबि थाके ॥ कह पठान सुलतान आन तजि हिय भयो

  • हिछन । वार बार मन बँधत बार लखि सहज सचिक्कन ॥ ४ ॥

| भूषन भार सँभारिहै क्यों यह तन सुकुमार । सौधे पाय न परि सकें सोभा हौ ।

  • के आर ॥ सोना ही के सार चलति लचकति कटि खीनी । तो अनिल उड़ाय जौ

। न होती कुच-पीनी ॥ कह पठान सुलतान तासु अँग अंग अदृषन। नरी किन्नरी - सुरी आदि तिय की तिय भूषन ॥ ५ ॥ (१२) उपस तसैया–सुना है कि गङ्गाधरनामक कवि हो गये हैं इनने सत्सई का भावार्थ फैला कर कुण्डलिया बनाई है और उनो उन भावों पर अपने बनाये दोहे भी लिखे हैं। इनके समय, स्थान, बंश इत्यादि के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है इनके ग्रन्थ का माम उपसतसैया है । ( इस ग्रन्थ का कहीं पता नहीं है ) (२३) रसकौमुदी-अयोध्या के महन्त बाबा जानकी प्रसाद ने बिहारी जी के चुने चुने ३१ ६ दोहीं पर कवित्त सवैयों का यह ग्रन्थ बनाया है। हमें इनके बनाये इतने ग्रन्थों का पता लगा है ॥ १ रस- कौमुदी, 4 सुजसकदव, ३ सुसतिपचीसी, ४ कवित्त वर्णावली, ५ बिरहदिवाकर, ६ इशकअजायब, ७ ऋतुरङ्ग, ८ रामरसायन, बजरङ्गबतोसी ॥ इनी का काव्य-नाम रसिकबिहारी है । इनके सब ग्रन्थ बाबू जगन्नाथप्रसाद खन्ना–गढ़बासी टोला बनारस, इस पते से मिलते हैं। इनन “अमी हलाहल” दोहे को भी बिहारी कृत माना है पर यह भूल है । यह रसकौमुदी ग्रन्थ छपा है निदर्शन के लिये दो कविता दिखलाई जाती हैं,- कहत सबै कवि कमल से मो मति नैन पषान । न तरुकु कत यहि विय लगत उपजत विरह कसान ॥ क० । ऐरो मेरी बीर अति कठिन सनेह पौर करत विहाल ज्वाल अंगन बढ़त है। रसिकविहारी

  • मति अलख अनूप न्यारी होवें दिलदार याको भेद सो लहत है ॥ भो मति निसंक नैन जुगल पषान
  • हैं ये कमल समान हथा. कोविद कहत है । नातर न पाइन लौं कत बिय लागत ही तीखौ अति वि

रह सानु उपजत है ॥ १ ॥ " पाय महावर देन को नोयन बैठी आय। फिर फिर जानि महावरी एड़ी भीड़त जाय । स० । नायन पायन जावक देन को प्रानप्रियाढिग आई उतावरी ।लाड़िली के ढिग बैठि. हरे रस ते पद कंज गहे सुचि भावरी ॥ लै अपने कर मैं नवला पग सो रसिकेस न भेद लखावरी । लाली ॐ विलोकि वही फिरि फेरि कै एड़ियै मीड़ति जानि महावरी ॥ २ ॥