•. विहारविहार । नवनागरितनमुलकलहि जोबनआमिल जोर । घटि वढ़ि तें बढ़ घटि रकम, करी और की और ॥२१॥ . करी और की और जोर निज खरो दिखायो । नीको राजप्रवन्ध ठानि
- जनमन तरसायो । गए स्याम हु मोहि देखि सुन्दरतागिरि । वरनि सके
- किहिँ सुकवि भरी जोवन नवनागरि ॥ ३४ ॥
.. पुनः ।। . - -.-. .-.-. और भयो अव राज जगतजाहिर जोवन को । नैनसैनपति वान चला- वत रुकत न तनको ॥ धन्य सोई अधिकार जासु इहिँ राज्य कछुक फव ।। विनु पूरव के पुन्य सुकवि नहिँ मिलत तिया नव ॥ ३५ ॥ | पुनः ।। और हि कटि अव भई नाहि कछु परत लखाई । कुच उमड़े ज्याँ विजय इंदुसी है आँधाई ।। चीन्ही परत न कळू भई अब जगतउजागरि । सुकवि रसीले स्याम मोहि गये लखि नवनागरि ॥ ३६ ॥.. |. . . पुनः और भयो तिय अङ्ग सवै विधि ते सुठि सोहन। मार हु मन को मारन अरु मोहन को मोहन । उच्चाटन देवन हूँ को ठानत उच्चाटन । कपन क- पैन सुकवि लसत यह नवनागरितन ॥ ३७ ॥
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== = ज्य ज्यौं जोवनजेठ दिन कुचमित अति अधिकात । ३. त्यौं त्यौं छन छन कटि छपा छीन परति नित जात ॥२२॥
- छीन परत नित जात छपा सी कटि छिन ही छिन । सदविन्दु भभराइ
३ उठत वातन ही दिन दिन ॥ अधरामृत की प्यास करत है विकल रसिक-
- गन 1 सुकवि कुरेरो होत जेठ दिन व्य ज्यौं जोवन ॥ ३८ ॥
• मार कान । भोरन को मोहन = कृष्ण को मोहन करने वाला का उद्धाटन == अंचे अटन करने
- वाले = विमान पर पलने वाले देव का विशेष कर्मणाकर्ण = वलभद्र का भी आकर्पण करनेवाला ।
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