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विहारीवहार ।। बाढ़त तोउर उरजभर भरि तरुनई बिकास ।।::: बोझनि सौतनि केहिये आवत हँधि उसास ॥२३॥ आवत लँधि उसास करेजो सो पुनि टूटत। तू मदमाती फिरत होस पुनि उनके छूटतं ॥ रहत उनींदी अधिक तुई उनक दाहत जुर । वे बोझन साँ मरत सुकवि कुच बाढ़त तो उर ॥ ३९ ॥ .... . पुनः । । | आवत धिं उसास तासु निहँचै हम कीन्हो । प्रेमभरयो कर तासु हीय
- हरि नैं नहिं दीन्हो । कहा जनि मैं अहै, न बूडत क्यों मुरलीसुर । सुकवि
- उनहिँ नहिँ अहे प्रेम जिम बाढ़त तोउर ॥४०॥
' ' | *भावक उभरौहाँ भयौ कछुक परयो भरुआय।... सीपहरा के मिस:हियो, निस दिन हेरत जाय ॥ २४ ॥ जाय बिलोकत बदन छन हिँ छन दरपन मॉहीं । टीका को करि उतरु ।
- देत पुनि सखियन पाहीं ॥ रुचत अधिक मुख पान नैन अञ्जन पग जावक ।।
- सुकवि विलोकत निहुरि निहुरि उभरौहाँ भावक ॥ ११ ॥
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- देह दुलहिया की बढ़ ज्यौं ज्यों जोवनजोति ।
त्यै त्यौं लखि सौतें सबै बर्दन मलिनदुति होति ॥२५॥
- : वदन मलिनदुति होति आँसुरी नैन बहावत । विलखत लेइ उसास सु-
- मिरि मन अति दुख पावत ॥ होत सवै बदरंग देखि तिहिँ रंग मैंहादिया ।
- सुकवि आँगुरी देत दसन लखि देह दुलहिया ॥ ४२ ॥....
- कुछ कुछ ।भाव = एकः । थोड़ा एक।. . .:::::::::::::::
- * यह दोहा कृष्णदत्त की टौका में नहीं है। :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: ::
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