पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/५

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देशभाषा का आदर बढ़ा वह शुद्ध मागधी न होकर 'पाली' हो गई। पाली की प्रकृति मागधी नहीं बल्कि ब्राह्मी अथवा ब्रमर्षि देश की लपित भाषा थी। संस्कृत की भाँति वह भी मगध की ठेट भाषा नहीं बल्कि शिष्ट भाषा थी। पाली के साथ ही साथ एक दूसरी भाषा भी व्यवहार में आ रही थी जो पाली की अपेक्षा कहीं अधिक शुद्ध और खरी थी। आगे चल कर जब पाली विल्कुल पोथी की भाषा रह गई, तब उसकी जगह जो चलित राष्ट्रभाषा मैदान में आई उसका नाम शौरसेनी था। शौरसेनी अधिक समय तक अपने शुद्ध रूप में प्रचलित न रह सकी। विदे- शियों के संसर्ग में आ जाने से जो अपभ्रंश नाम की एक सचेष्ट भाषा निकल पड़ी थी यही धीरे धीरे सर्वत्र व्याप्त हो गई। मगध में भी उसका प्रसार हो गया। वहाँ के सिद्धाचार्यों (सर- ह और कृष्णाचार्य) तक ने उसका स्वागत किया। कहने का तात्पर्य यह कि मगध में भी बहुत दिनों से एक ऐसी सामान्य राष्ट्रभाषा का प्रचार चला आ रहा था जो वास्तव में वहाँ की ठेठ भाषा न थी, पर जनता को प्रिय तथा बोधगम्य अवश्य थी।

मुसलमानों ने जिस भाषा को प्रायः हिंदी या हिंदुई के नाम से याद किया है उसी को समय समय पर 'रेखता' और 'गूजरी' भी कहते रहे हैं। रेखता का साफ अर्थ है अपभ्रंश! अपभ्रंश को ही आरंभ में यवनों ने रेखता कहा और फिर उर्दू नाम की एक नई जबान निकल आने पर उसकी मनमानी व्याख्या की। 'गूजरी' की भी कुछ यही दशा है। यह और कुछ नहीं गुर्जरों