पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४ )

की भाषा है, उन्हीं गुर्जरों की जिनके पुरोहितों की भाषा नागरी है। नागर गुर्जरों के पुरोहित थे। रेखता और गूजरी को अलग रख अब तनिक हिंदी पर भी विचार कर लीजिए। याद रखिए, हिंदी का संकेत कभी समूचे भारतवर्ष की भाषाओं के लिये नहीं हुआ है बल्कि आर्यावर्त या ठेठ हिंदुस्तान की भाषा के लिये हुआ है। ठेठ हिंद की भाषा का नाम हिंदी है, कुछ आजकल के समूचे हिंद की भाषा का नहीं। ठेठ हिंद का संकेत प्रायः वही समझना चाहिए जहाँ के लोग आज भी बोलचाल में 'हिंदुस्तानी' कहे जाते हैं। हिंदी वरतुतः उन्हीं की भाषा है।

हिंदी वास्तव में एक व्यापक भाषा का नाम है जिसके क्षेत्र में अनेक विभाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। जगह जगह पर इन बोलियों तथा विभाषाओं को भी हिंदी कहा गया है। इन विभाषाओं में से दो का उल्लेख तो अमीर खुसरों तक ने कर दिया है जिनमें से एक अवधी है और दूसरी देहलवी। अवधी और देहलवी का यह विभाजन आज भाषाविदों में पूर्वी और पश्चिमी हिंदी के रूप में ख्यात है। अवधी का प्रचार कभी बिहार में भी था और फलतः आज भी कुछ न कुछ वहाँ के मुसलमानों में बना भी है। पर बिहार ने आज एक स्वर से जिस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में अपना लिया है वह 'देहलवी' अथवा उसी का एक चलित परि- मार्जित रूप है।

अमीर खुसरो की 'देहलवी' और कुछ नहीं बल्कि वही पुरानी 'ब्राह्वी' है जो सदा से अनेक रूपों में भारत की राष्ट्रभाषा रही