पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/५४

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और तो और गुरु वशिष्ठजी की 'बहाली' तो गजब ढा रही है। न जाने किस अपराध में बूढ़े बाबा बरखास्त कर दिए गए थे! 'तालीम सीख ली' भी कुछ कम नहीं है। 'तालीम' और 'बहाल' का ऐसा ताजा प्रयोग बिहारी हिंदुस्तानी के सिवा अन्यत्र कहाँ मिलेगा। 'तसल्ली' के लिये कुछ तसल्ली का हाल भी देख लें। 'उन्हें बल का काम करने के लिये तसल्ली' देते रहें; प्रोत्साहन कदापि नहीं। रही 'राजा' की बात। सो उसके विषय में नोट यह कर लें कि अति प्रचलित होने पर भी वह आमफहम नहीं है क्योंकि 'संसकिरित' में भी इसका प्रयोग होता है और बहुत से लोग, यहाँ तक कि पक्के मुसलमान भी अपने आपको शान के साथ 'राजा' कहने में कोई हर्ज नहीं समझते। इसलिये यह जरूरी है कि राजा की जगह 'बादशाह' को चाल कर दिया जाय और कुछ दिनों में यह दिखा दिया जाय कि राजा दशरथ सचमुच राजा नहीं बल्कि 'बादशाह' थे। उन्हें राजा तो कट्टर हिंदीपरस्त कहने लगे हैं जो रातदिन फारसी, अरबी लफ्जों को निकाल फेंकने की चिंता में लगे रहते हैं।

पंडित सेवाधर झा की 'हिंदीनवाजी' और 'दिल के चोर को छिपाने की कोशिश' आपके सामने है। उसका परिणाम हिंदी के लिये कितना सुखद तथा हितकर है, इसके कहने की जरूरत नहीं। अब तनिक श्री अनीसुर्रहमान की लेखनी के मुँह से 'जगद्गुरु' की 'जबान' सुन लीजिए, और भूल न जाइए कि यह जगद्गुरु शंकराचार्य की प्यारी जबान है। आप फरमाते हैं―