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पृष्ठ:बीजक.djvu/१००

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रमैनी । (४९) जहियाहोतपवननहिंपानी। तहियासृष्टिकोनउतपानी॥१॥ तहियाहोतकलीनाहँफूला। तहियाहोतगर्भनहिंमूला ॥२॥ । जहिया कहे जेहि समय सृष्टि नहीं रही जेहि समय न पवन रह्यो न पानी रह्यो तब सृष्टिको कौन उत्पन्नकियो १ न तब केली रहीं न फूल रह्यो अर्थात् न बालरह्या न वृद्धरह्यो न गर्भरह्यो न गर्भको मूलबीज रह्यो ॥ २ ॥ तहियाहोतनविद्यावेदा । तहियाहोतशब्दनहिंखेदा ॥ ३॥ तहियाहातपिंडनहिवासु । नाधरधरणिनगगनअकासू॥४॥ तहियाहोतगुरूनहिंचेला । गम्यअगम्यनपंथदुहेला ॥५॥ न वेदरह्यो न चौदहौ बिद्यारहीं न शब्द रह्यो न खेद कहे दुःखरह्यो ३ न पिंडरह्यो न पिंडमें जीवको बासरह्यो न अधरकहे पातालरह्यो ना धरणिरही न आकाश रह्यो ४ न गुरूरह्यो न चेला रह्यो न गम्यकहे सगुणरह्यो न अगम्य | कहे निर्गुणरछे औ दुहेला कहे दूनोंपंथ नहींरहे ॥ ५ ॥ साखी ॥ अविगतिकीगतिक्याकहौं, जाकेगाँउनठाँउ ॥ गुणविहीना पेखना, काकहिलीजै नाँउ ॥ ६॥ | वह जो अविगतिकहे अब्यक्त जो नहीं प्रकटहोय, धोखा ब्रह्म है निराकार ताकेगाँउ आँउ नहीं है वह गुणकरिकै विहीन जो निर्गुणहै ताको पेखना कहे देखिबेको का कहिकै नामलजें कि यद्दई बातो कुछबस्तुही नहीं है ॥ ७ ॥ इति सातवीं रमैनीसमाप्तम् । अथ आठवीं रमैनी । ( वेदांत विचार) तत्त्वमसी इनके उपदेशा । ईउपनिषद कहै सन्देशा ॥ १ ॥ अनिश्चय उनकेवड़भारी। वाहिकिवर्णकरै अधिकारी ॥२॥ परमतत्त्वकानिजपरमाना।सनकादिकनारदसुखमाना ॥३॥