पृष्ठ:बीजक.djvu/१०१

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(५०) बीजक कबीरदास । याज्ञवल्क्यऔजनकसँवादा । दत्तात्रयी वहै रसस्वादा ॥४॥ वहै वसिष्ठ राममिलि गाई । वह कृष्णऊधवसमुझाई ॥६॥ वहै बात जो जनक दृढाई । देहै धरे विदेह कहाई ॥ ६॥ साखी । कुल अभिमाना खोयकै, जियत मुवा नहिं होय॥ देखत जो नहिं देखिया, अदृष्ट कहावै सोय ॥७॥ | तत्वमसी इनके उपदेशा । ई उपनिषद कहै संदेशा ॥ १ ॥ | तैने धोखा ब्रह्मको जौनी रीतिते गुरुवालोग उपनिषद्को प्रमाणकै प्रतिपादन करै हैं सो, औ सांच जो अर्थ है सो कबीर जी दोऊ तात्पर्य करिकै देखावै हैं। तत्त्वमसी जो श्रुति उपनिषद्को उपदेश ताको गुरुवालोग संदेश ऐसोकहे हैं। संदेश कौन कहाँवै है कि बातको पूर्वापर नहीं समुझे वाकी कहनूति वासों कहि देईं जे संदेशको हेतुपूछे कि कौनेहेतुते कह्यो है तो वह कहै हैं कि संदेश कह दिया यह नहीं जाने हैं कि कौन हेतु ते कह्यो है सो ऐसे गुरुवा लोग श्रुति को तो पूर्वापर जानै नहीं हैं अक्षर मात्रको अर्थ केरै हैं कि तत्त्वं ब्रह्मत्व असि तौन ब्रह्मतूही है सो जीवहीको अनुमान तौ ब्रह्म है जीव ब्रह्मकैसेहोयगो ब्रह्मतो ज्ञानस्वरूप है शुद्ध है माया कैसे धरिलावती अज्ञानी कैसेहोतो तौ गुरुवालोग कहें हैं कि वा अतर्क है तर्क न करो सो जीवहीको अनुमान तौ ब्रह्महै। जीव ब्रह्म कैसे होयगो । सो श्रुतिको अर्थ यह है कि पूर्वषोड़श कलात्मकजीवको कहिआये हैं ताहीको कहे हैं कि त्वमसि तीन षोड़श कलात्म जीव है षोड़श कला तोहीमें हैं तू उनते भिन्न है शुद्ध है यह जीवको स्वरूप लखायो सो नहीं समुझै हैं सों या बात मेरे तत्त्वमस्यार्थबादमें विस्तारतेहै ॥ १ ॥ ऊनिश्चयउनकेवड़भारी । वाहिकिकरणकरैअधिकारी॥२॥ ऊ कई वह जे धोखा ब्रह्महै ताहीकी निश्चय उनकेबड़ीभारींहै बाहीकी बैरण कहे वही धोखा ब्रह्मको अधिकारी जे चेलाहैं तिनको बरणकरै है अर्थात