पृष्ठ:बीजक.djvu/११

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विषय. (८) बीजककी-अनुक्रमणिका । | पृष्ठ. | विषयः । मैं आयो मेहतर मिलन तोहि ४८५ | जहं लोभ मोहके खंभा दोऊ ५२४ बुढ़िया हंसि कहै मैं नितही वारि ४८७ | || इति हिंडोला | तुमबूझहु पण्डित कौनि नारि ४८९ | ॥ अथ साखी ॥ माइ मोर मानुष है अति सुजान ४९० घरहि में बाबू बढ़ी रार ४९१ | जहिया जन्म मुक्ताहता ५२५ कर पल्लवके बल स्वेलै नारि ४९४ | शब्द हमारा तू शब्द का ५३१ ऐसो दुर्लभ जात् शरीर ४९५ | शब्द हमारा आदिका ५३२ सबही मदमाते कोई न जाग ४९६ | शब्द विना श्रुति अधिरी ५३३ शिव काशी कैसी भई तुम्हारी ४९७ | शब्द शब्द बहु अंतरहीमें, ५३३ हमरे कहल के नहिं पतियार ४९९ | शब्दे मारा गिर गया ५३४ ॥ इति बसंत || शब्द हमारा आदिका ५३४ . ॥ अथ चाचर ॥ जिन जिन सम्बल ना किया ५३४ ई हई सम्बल करिले ... ५३४ खेलत माया मोहिनी नेर किया जो जानहु जिय आपना ... ५३५ | संसार ... ... ५०१ | जो जानहु पिव आपना ५३५ नारहु जगको नेहरा मन बौराहो ५०५ | पाना प्यावत क्या फिरो ... ५३५ | ॥ अथ बली ॥ | हंसा मोती बिकानियां ... ५३६ हेसा सरवर शरीर मह हो । हंसा तुम सुबरण बरण ... ५३६ रमैया राम... ... ५०९ | हंसा तूतो सबळ था ... ५३६ मन सुस्मृति जहडायहु हो । हेसा सरवर ताने चले ५३७ रमैया राम ... ... ५१३ | हंसा बक एक रंग लखिये ५३७ । ॥ इति बेली | काहे हरिणि दुबरी ... ५३७ तीनलोक भौ पीनरा ॥ बिरहुली ॥ ... ५३८ लाभे जन्म गवइया .... ५३८ आदि अंत नहिं होत. बिरहुली ५१७ | आधी साखी शिर खंडै ५३८ | ॥ हिंडोला ॥ | पांचतत्व का पूतला युक्ति रचीभर्म हिंडोला झूले सब जग आय ५२० | ... ... ५३९ बहुविधि चित्र बनायके हरि | | पांचतत्व का पूतला मानुष| रभ्यो क्रीडा रास ... ५२३ | धरिया नाइँ ... ... ५३९