पृष्ठ:बीजक.djvu/१९८

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( १४८ )
बीजक कबीरदास ।

(१४८) बीजैक कबीरदास । साखी ॥ गुणातीतके गावते, आपुहि गये गमाय ।। | माटतन माटीभिल्यो, पवनहि पवन समाय ।।६।। गुणातीत जो साहबके लोक ताकेगावते कहे प्रकाशतेजहाँसमष्टि जीवरहै है तहां आपुही रामनाम को साहबमुख अर्थ गमाय कै संसारमुख अर्थ कार संसारी द्वैगयो शरीर धारणकियो पुनि माटोमें माटी मिलिगया और पंवनमें पवन मिलिगयो अर्थात् ते पुनि जैसेके तैसे ढ़े गये है जो सुगा • ततके गावते यह पाठ होइ तौ यह अर्थ है गुणातात जो है धोखा ब्रह्म ताको गावत. गावत साहब को गवांइ जातभये ॥ ५ ॥ इति इकसठवीं रमैनी समाप्तः । अथ बासठेवी रमैनी। चौपाई। जोतोहिं कर्त्तवर्णविचारा । जन्मत तीनिदण्ड अनुसार जन्मत शूद्रभये पुनि शूद्रा । कृत्रिमजनेउ घालिजगदुद्रा२ जोतुमब्राह्मणब्राह्मणीजाये । और राह तुम काहेन आये है जो तू तुरुक तुरुकिनी जाया। पेटैकाहेन सुनतिकराया ४ कारी पीरी दूहौ गाई । ताकर दूध देहु विलगाई ५ छोडकपटनलअधिकसयानी।कहकवीर भजुशारंगपानी ६ जोतोहिंकर्त्तवर्णविचारा। जन्मततीनिदंडअनुसारा ॥१॥ जेताको ब्रह्मा बर्णको विचारकियो कि ये ब्राह्मण क्षत्री बैश्य हैं शूदहैं। मुसल्मानहैं सो एता शरीर के धर्म हैं तीनिदण्ड जे हैं संचित क्रियमान प्रार तिनके कर्मके अनुसारते जन्मनुकहे जन्मलेइ हैं ॥ १ ॥