________________
(२२२) बीजक कबीरदास । जो कह्यो ताते आनन्दरूप वे महल वर्तमान बने हैं। अमहल कह्यो याते निर्गुणधर्म आये औ महलकह्या याते सगुणधर्म आयो । सगुणनिर्गुण में नहीं होयहै । निर्गुण सगुणमें नहीं होयहै उन में दोनों धर्म बने हैं ताते वे निर्गुण सगुणके परे विलक्षण महल में हैं। तिनमें जायके दिवाने भये । माया ब्रह्ममें जो दिवानेरहे सो छोड़ि दिये । अमहलमें दिवाना है गये महलन में साहबकी अनेक प्रकारकी लीडनको ध्यान केंकै हसरूप में स्थित वैकै रसरूपाभक्ति पानकैकै छकिरहे । रसरूपाभक्ति शांतशतक के तीसरे खंड में औ रामायणादिकमें हमलिखेन है सो देखिलेहु ॥ ४ ॥ ध्रुव प्रह्लाद विभीषण माते माती शिवकी नारी । सगुण ब्रह्म माते वृन्दावन अजहुं न छूटि खुमारी॥६॥ औ ध्रुव प्रहृलाद विभीषण औ पार्वती मतिगई औ सगुण ब्रह्म जे साक्षात नारायण श्रीकृष्ण हैं तेऊ वृन्दावन में मतिगये । अवहूं भरखुमारी नहीं छूटी की भाव यहहै कि, जिनके शरीर छूटे तेते। साकेतहीमें जाय दिवानेभये कहे प्रेम में छके । ओ निके शरीर बनेंहैं तिनहूँकी खुमारी नहीं छुटी कहे अबहू भर श्रीरामचन्द्रहाकी उपासना करहैं तामें प्रमाण ।। ( पूजितोनंदगोपाचैःश्रीकृष्णेनापिपूजतः । भद्यामहिषाभिश्चपूजितौरघुपुङ्गवः ॥ ) यह व्रह्मवैवर्त्त को प्रमाण है जौने को प्रमाण सव आचार्य दियो है ॥ ५ ॥ | सुर नर मुनि जेते पीर औलिया जिनरे पिया तिन जाना। कहै कवीर गूंगे को शकर क्यों कर करे वखाना ॥ ६ ॥ | ॐ सुर नर मुनि नेते पीर औलिया हैं तिन में जे श्रीरामक्न्द्र की उपासना कियाहै तेई रसभरी प्रेमकटेरी पियो है औ तेई मन बचनके परे हैं। जे साहबके नामरूप लीलाधाम तिनको जान्यो है । सो निनजान्यो है तिनको वर्णन करिबको वह गूंगे को शकर है काहेत वह मन बचनकेपर है, जब वहीभांति उहाँढे जाय तब वाको स्वाद पावै । काहू सों वाको कोई बखान नहीं कर सकैहै। सो कवरजा कहैं । जो कोई कहै यहअर्थ नहीं है वह प्रेमको पियाला जौ कबीरजी ब्रह्मको कहिआये वहीको पीपीके सब मतवार द्वैगये हैं,सांचपदार्थ