पृष्ठ:बीजक.djvu/२७३

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शब्द । (२२३ ) नहींनान्यो, तौ हम यहकहै हैं कि, निनको कंबीरजी आगे वर्णन कारिआयेहैं। तेई नहीं जान्य तौ तुमहीं कैसेजान्यो ? जो कहोहम अपने गुरुवनके बताये जान्यो तो गुरुवनको कह्यो वाणीको कह्यो तो तुमही झूठकहौहो । जो कहो पारिख करिकेनान्यो तो पारिखकिये तैौ मन बचनके परे औ निर्गुण सगुणके परे जे शुद्ध जीवात्मा सदा रघुनाथजीके निकटवर्तीत और श्रीरामचन्द्र येई अवैहैं वेद शास्त्रमें प्रमाण भिलै हैं तुमपारिखकहिके मनबचनके पकौन पदार्थराख्यो है । जोकहो हमजीवात्माको मानै है है कोई ब्रह्मको मानै तौ आत्मा ॐ ब्रह्म येहू नामहै वचन में आयगयो । औ तुम जो विचारकरौहो सो मन में आयगयो । जो कहो तुमंहीं कैसे श्रीरामचन्द्रको मनबचनके परे कहीही वोऊतो मन वचनमें आय जायतें; तौ हम पूर्व लिखिआये हैं कि, नारायण राम अवतार लेईंह तिनके नामरूप लीला धामके वर्णन करके, वे जे परमपरपुरुषश्रीरामचन्द्र तिनको सपरिकर लक्षितकरै हैं । वे मन बचनके परेहैं औ यहूआगे लिखिआये हैं कि । (ऐसी भांति जो मोकह ध्यावै । छठयें मास दरॐ सो पावै ) ॥ सो अपनी इन्द्रियहै आपैदेखेपरे हैं जो कोई उनके प्रसन्नकरिवेको उपायक है सो साहिबैके जनाये जाने है । तामें प्रमाण कबीरजी की साखी सागरकी चौपाई ॥ ( जॉनैसो जोमहीं जनाऊ । बांह पकरिलोकै लैआऊ )। बीजकोमॅलिखी है साखा ॥ ( बहुबंधनतेवांधिया एकबिचाराजीव । काबलछुटै आपने जो न छुड़ावैपीव ) । उनको वर्णन कोई जीवनहीं कारिसकै है, तेहिते जो पारिख हम कियो साई सांचहै जो तुम पारिखकरोही सोझूठहै । तुम श्रीकवीरजीको अर्थजानते नहींहो भ्रममें लगेहो अनामा उनहीं को नामहै अरु बोई हैं तामें प्रमाण ॥ ( अनामासोप्रसिद्धत्वादरूपो भूतवर्जनात् ॥ इति वायुपुराणे ) ॥ ६ ॥ इति बारहवांशब्द समाप्त ।। अथ तेरहवांशब्द ॥ १३॥ राम तेरी माया दुन्दि मचावै । गति मति वाकी समुझिपरै नहिं सुर नर मुनिहिं नचावै॥१॥