पृष्ठ:बीजक.djvu/३९१

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शब्द । | ( ३४३ ) एक शब्द में राग छत्तिसौ अनहद वाणी बोलै ॥ २॥ | मुखको नाल श्रवणके तुम्बा सतगुरु साज बनाया। जिह्वा तार नासिका चरही माया मोम लगाया ॥३।। गगन मॅडल मा भा उजियारा उलटा देर लगाया । कह कवीर जन भये विवेकी जिन यंत्री भर लाया ॥ ४॥ । यंत्री यंत्र अनुपम वाजै । वाके अष्ट गगन थुख है ।।१।। यंत्री ने ई जीव ताक यंत्र जो शरीर है सो अमूपम बोन बानै है वनिमें सात स्वर बाज अम् आठव जीवके तारमें टीपको स्वर बानै है औ इहां यह शरीर में सात चक्र सहस्तारलों तिनके बीच बीच जो है आका ये सात गगन भये अरु आठव सहस्तार के ऊपर को जेः आकाश तामें सुरपति कमहमें बैठ जो गुरुनाम बतावै है सो वह आठवां गगन जाइकै राज्यों कहें। रामदाम सुनिकै लेन लग्यो सो इहां सुषुम्णा जो नाड़ी सोई तार हैं मूलाधार चक्रसुरति कमल येई तुम्बा हैं ॥ १ ॥ तूही गाजै तूही वाजै तुही लिये करडोले । एक शब्द में राग छत्तिसौ अनहद वाणी बोल॥२॥ । सो या बीणाको तुह! गानें कहे सुरति कमलमें तुही म लेइ है औं तुहीं बाजै कहे तुही सुरति बोले है औ तुही सुरतिको बैकै डॉ है कहे तुहीं सुषम्णा है चड़िजाइहै अर्थात शरीरका मालिक तुही है । बीणामें छत्तिस राग बोले हैं। औ इहां एक शब्द जो है राम नाम तामें चौंतिस बर्ष की पैंतीसौनाद औं छत्तिसौबिंदु ई सब हैं बिंदुते आकारादिक स्वर आइगये वही अनहद है कहे वहींको हद नहीं है तौने रामनाम रूपी बाण सुरति कमल में गुरु बोले है मों तहीं जपैहै या अंतर बीणा बतायो सो जानु अब बाहर का बीमा बतावै हैं ॥ २ ॥