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पृष्ठ:बीजक.djvu/३९२

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| (३४४) बीजक कबीरदास । मुखको नाल श्रवणके तुम्वा सतगुरु साज बनाया। जिह्वा तार नासिका चरही माया मोम लगाया ॥ ३ ॥ बीणा बीचमें डांड़ाहै यहां मुखै नाल डांड़ा है वीणामें दुइतुम्बा लगैहैं यहां दूनों ने श्रवण तेई तुम्बाहैं बाणाको स्वर मिलावै हैं औ यहां सतगुरु हैं तेःसाज बनाइ जीवनको उपदेश करै हैं औ बहा बीणामें तार लागै है अरु यहां जीभ जा है सोई तार है औ बीणामें चरही कहे सार लॉगैहै औ यहां नासिका वरही कहे सारे सारमें मोम जमाया जाइ है यहां माया जो है गुरूकी कृपा माया दम्भे कृपाय च।। सोई मोम जमायो जैसे बीणा में जौन स्वर बनावै तौन बाजै है। तैसे सुरति कमलते गुरू जो राम नामको उपदेश कियो सोई कीभते जपे है ॥३॥ गगन मॅडल मा भा उजियारा उलटा फेर लगाया। कह कबीर जन भये विवेकी जिन यंत्री मन लाया॥४॥ | बीणा जब सुरते बानै है तब सब रागनको उजियारा है जाईंह औ आछ। लँगैहै सबराग जानि जाईंहैं और दूसरे पक्षमें जीवको उल्टो ज्ञान जगत्मुख द्वैगयो हैं ब्रह्ममुख द्वैगया औ आत्मामुख द्वैगयो हैं कि महीं ब्रह्महौं ताको नाना शब्दमें समुझाइकै अठयें गगनमें जीवको साहब मुख करतभये तब जीवको ज्ञान द्वैगयो सब धोखा छोड़िकै साहव में लग्यो जगत् मुख रह्यो सो उलटा रह्या ताको सीधेमें गुरुवालोग फेरि लैआये औ लगायो । पाठ होइतो साहबमें लगावत भये श्रीकबीरजी कहहैं कि, यंत्री जो हैं बीणाकार उस्ताद तौनेते जो बीन बजावै मन लगाये सीखैहै तौ वाको सुरनको रागनको वे ब्यौरा आइ जाइहैं ऐसै सुरति कमलमें बैठे जे हैं परमगुरु जे राम नामको उपदेश करै हैं तिनसोंजो कोई यंत्री जीवात्मा मन लगावै है मो बिबेकी होइहै कहे जगत् को असच जानिकै सांच साहब में लगि जाइँहै ।। ४ ।। इति उनहत्तरवां शब्द समाप्त ।