पृष्ठ:बीजक.djvu/३९३

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शब्द । ( ३४५) अथ सत्तरवां शब्द ॥ ७० ॥ जसमास नरकी तसमास पशुकी रुधिररुधिर यकमाराजी। पकी मास भखै सबकोई नरहि न भखै सियाराजी ॥१॥ ब्रह्मलाल मेदिनी भरिया उपाज विनशिकित गइयाजी । मास मछरिया जोपै रवैया जो खेतान में बोइयाजी ॥२॥ | माटीको कार देई देवा जीव काटि कटि देइयाजी । । जो तेरा है सांचा देवा खेत चरत किन लेइयाजी-॥३॥ कहै कबीर सुनहो संतो रामनाम नित लैयाजी ।। जो कछुकियो जिह्वाके स्वारथ बदल परारा दैयाजी ॥४॥ जसमासनरकी. एशुकी रुधिररुधिरयकसाराजी। पशुको मास भखै सवकोई नरहि न भखै सियाराजी॥१॥ जस नरकी मास होइ है तसे पशुकी मास होइ है अरु रुधिर भी एक तरह होइ है परंतु पशुके मासको जे भक्षण करै हैं ते सियारई हैं सो वे मनुष्यते ॥ सियारते यतनै भेद है कि, सियार मनुष्यको मांस खाइ हेअरु नरपशु की मांस खाई है मनुष्यको मांस पशु नहीं खाई है मो कहै हैं कि, रुधिर मांस तो सब एकई तरह है नर की मांस काहे नहीं खाय हैं ॥ १ ॥ ब्रह्म कुलाल मेदिनी भरिया उपजि विनशिकित गइयाजी। मास मछरिया जोपै खैया जो खेतनि में वोइयाजी ॥२॥ | जौनेते सब पृथ्वी जगत् भयो है ऐसे जो है ब्रह्मा कुलाल जो कुम्हार औ सर्वत्र जगत् में भरै रहा अर्थात् सब वस्तु ब्रह्मई रह्या तौ यह सब पृथ्वी उपजी ॐ बिनशिक कहांगई सो एक ब्रह्मही सर्व मानिकै जे मास मछरी रखाउ कि सब तो एकई है जो मन चलैगो सो करेंगे नरक स्वर्ग कर्म सब