________________
शब्द । | ( ३९१) जैसे माखी फूलनके रसके स्वादको पाइकै विहार करै है है ताहीक सहतको धन जोरि जोरिकै धेरै हे तैसे तुमहू विषय भोग करिकै धन जोरि जेरि धरौहौ सो जैसे कोई आइकै मछेहन के लाईक सहतको लैजाइकै आपुसमें वांटि लेइहै तैसे तोहीं पीछे कहे जब तुम न रहिजाउगे तव तिहारे धनकः स्त्री पुत्रादिक लेहु लेहु करिकै बांट लेईंगे अरु नुमको भून की रहनि कह दशदिन भूत कहेंगे मरवटामें बैठावेंगे ॥ २ ॥ देहरीलौ वरनारि संगहै आगे संग सहेलः ।। मृतुकथान सँग दियो खटोला फिर पुनि हंस अकेला३ जारे देह भसम वैजाई गाड़े माटी खाई ।। काचे कुंभ उदक जो भरिया तनकै इहै बड़ाई ॥ ४ ॥ ये चारो तुनको अर्थ स्पष्टै है ॥ ४ ॥ राम नरमास मोहमें माते परयो काल वश कूवा । कह कबीर र आपु वयो ज्यों नलिनी भ्रम सुवा॥६॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि हेनीव! हमें माते राममें नहीं रमै है कालके वश वैकै संसार कूपमें परयो है वाते बारबार तेरो जन्म मरण होइहै सो तौ अपनेही भ्रमते नानादुःख सहै है जैसे नलिनी को सुवो अपनेही चंगुलते धरि लियो छोड़े नहीं है मारो जाइँहै तैसे तैहू दाना मजनमें ठगिकै अरु विषयनमें लरिके आपहीते यह संसारमें परिकै बँधिगया संसारको धरे है भाव यह है संसार तोको बांधे नहीं है तै छोड़ि काहे नहीं देइहै अरु जेहि साहबको हैं है जहां एकऊ दुःख नहीं हैं तिनमें काहे नहीं लगे है ।। ५ ।। इति तिहत्तरवां शब्द समाप्त । अथ चौहत्तरवां शब्द ॥ ७४ ॥ योगिया ऐसोहै वद करणी। जाझे गगन अकाश न धरणी हाथ न वाके पाउँ न वाके रूपनवाके रेखा ।। बिना हाट हटवाई लावै केरै ब्याई लेखा ।। ३ ।। है