पृष्ठ:बीजक.djvu/४४८

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(४०० ) बीजक कबीरदास । जीबको संसारमें डारि देइ हैं सो कैसे डारि देइहै सो कहै हैं जौन बादरको नट नचावै है सो मादरिया कहावे सो मनहै ताकी बेटी जो है इच्छा सो उत्पन्न भई तब जीव संसारमें परयो ॥२॥ हे जीव! तें यह बिचारु कि, यामें परिकै हभ बहनेय हैं अर्थात् बहन वारे हैं सो वही जायँगे अरु हमारे सार कहे सारांश मै हैं औ हमारे बाप रामै हैं औं पुत्र रामै हैं तामें प्रमाण ॥ * रामा माता मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मेरामचन्द्रो दयालुनन्यं जाने नैव जाने न जाने ॥ तामेंकबीरजीहूकोप्रमाण ॥ राम हमारे बाप हैं राम हमारे भ्रात । राम हमारी जाति हैं, राम हमारी पांत'। सो यह विचारिकै श्रीकबीरजी कहै हैं कि, हरिके बुता कहे हरिनके बूतते अर्थात् अपने बलते नहीं। कुकुरी जो माया है ताके पति हे जीवो! सर्व नात रामै सों मानिकै रामैंमें रमे अर्थात् जब तुम साहबके होउगे तब साहब हंस स्वरूप दैकै तुमको अपने धामको बोलाइ लेईंगे ॥ ३ ॥ ४ ॥ इति सवां शब्द समाप्त है। | अथ एकसै एक शब्द ॥ १०१ ॥ देखि देखि जिय अचरज होई। यह पद बूझै बिरला कोई धरती उलटि अकाशहि जाई । चींटीके सुख हस्ति समाई २ विन पवनै जहँ पर्वत उडै । जीव जंतु सव विरछा बुडै॥३॥ सूखे सरवर उठे हिलोलाविनु जल चकवा करै कलोल॥४॥ बैठा पण्डित पढ़े पुरान। विन देखे का करै बखान॥६॥ कह कबीर जो पद को जान । सोई संत सदा परमान॥६॥ | देखि देखि जिय अचरज होई।यह पद बूझै बिरला कोई॥१॥ धरती उलटि अकाशहि जाई । चींटीके मुख हस्ति समाई २