पृष्ठ:बीजक.djvu/४४९

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शब्दू । श्रीकवरिज कहै हैं कि मैं तो स्पष्टई कहौहाँ पै यह पद जो साकेत लोक ताको केाई बिरला बुझे है सो यह देखि देखि मोको बड़ो आश्चर्य होइ है। ॥ १ ॥ जब महाप्रलय होय है तब धरती उलटिकै आकाशको जात रहें। कहे पृथ्वी जलमें जल तेजमें तेन वायुमें वायु आकाशमें समाई जाइहै अरू वही जो है आकाश से अहङ्कार में समाई है अरु अहङ्कार महत्तत्व में सभइहै स महत्तत्त्व मन काहेते कि यह सब बिस्तार मनही को है सो महत्तत्व है आदि कारण मन हाथी सो भगवत् अपना रूप जो है जगत्की मूलशक्ति सूक्ष्म चींटी ताके मुख में समाइ है ॥ २ ॥ बिन पवने जहँ पर्वत उड़े। जीव जंतु सब विरा बुडै ३ | वह साहबकै अज्ञान रूपा मूल प्रकृति लोक प्रकाश में जो समष्टि जीव तह समान रहे है पृथ्वी आदिक तो समाई गये हैं उहां पवन नहीं है परन्तु वह चैतन्याकाश कहे ब्रह्मरूपी आकाश मे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड जे पर्वत हैं ते उड़तई रहे हैं अरु वही सरवरमें जीव जन्तु ते सहित ने संसार रूपी वृक्ष के बूड़े हैं अर्थात् वही ब्रह्ममें सब संसारकी लय होय हैं ॥ ३ ॥ सूखे सरवर उठे हिलोल। विलु जल चकवा करै कलोल४ वैठा पण्डित पढ़ पुशन । विन देखे का केरै बखान ६ | वह ब्रह्मतो सूखा सरोवरहै अर्थात् से ब्रह्म महहौं यंह मानिबो मिथ्या है लोक प्रकाश ब्रह्म सत्य है तौने के प्रकाश की हिलेर उठे है तहां बाणारूप जल त है नहीं ॐ चकवा जे जीव ते कळल करै हैं कहे वहँते पुन्हि बाणाको उत्पत्ति करिकै संसारी है जाइहैं ॥ ४ ॥ पण्डित जे हैं ते बैठे पुराग है हैं अरु उत्पत्ति प्रलयको सब बखान करे हैं यह तो नहीं समुझे हैं। कि वह तो बिन देखे का है कहे शून्य है जो हम ज्ञान उपदेश करकै वहि ब्रह्ममें लगे तो भगवत् अज्ञान रूपी कारणशक्ति तै उहां बनिही है माय फेरि न धार लै आवैगी ।। ५ ।। कह कवीर जो पदको जान । सोई संत सदा परमान्न ६