पृष्ठ:बीजक.djvu/४९

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                          रमैनी।

कामिनी पहिर पिया सों रॉची । कहैं वीर भव बूड़त बांची ॥ २३ ॥ रमैनी ॥ भव बूड़त बेड भगवान ॥ चढे धाये लागी लौ ज्ञान ॥ थाह न पावे कहे अथाह ॥ डोलत करत तराहि तरह ॥ सूझ परे नहिं वार न पार ॥ कहै अपार रहै मंझधार ॥ माझधारमें किया विवेककहाँ के दूजा कहांके एक ॥ बेर आपु पु अवधार॥ आपै उतरन चाहेपार ॥ बिन जाने जाने है और॥आपै राम रमैसब ठौर॥ बार पार ना जाने जोर ॥ कहै कबीर पार है ठौर ॥ २४ ॥ रमैनी ॥ अक्षर खानी अक्षर वानी ॥अक्षर ते अक्षरउतपानी अक्षर करता आदि प्रकास ॥ ताते अक्षर जगत विलास ॥ अक्षर ब्रह्मा विष्णु महेश ॥ अक्षर रज सत तम उपदेश ॥ छिति जल पावक मरुल अकाशसब अक्षर मी परकाश ॥ दश औतार सो अक्षर माया ॥ अक्षरनिर्गुणब्रह्मानिकाया ॥ अक्षर काल संधि अरु झांई॥ अक्षर दहिने अक्षर बैई ॥ अक्षर आगे करे पुकार ॥ अटके नर नहिं उतरे पार ॥ गुरुकृपा नि उँदैयविचार ॥ जानिपरी तव गुरुमतसार ॥ साक्षी ॥ जहां ओसको लेश नही, बूडे सकल जहान ॥ गुरु कृपानिज परखबल, तव ताको पहिचान ॥ २७॥ रमैनी ॥ अक्षर काया अक्षर माया ॥ अक्षर सतगुरु भेद बताया ॥ अक्षर यन्त्र मन्त्र अरु पूजा ॥ अक्षर ध्यान धरावत दूजा ॥ अक्षर पढि २ जगत भुलान ॥ अक्षर बिनु नहिं पावै ज्ञान ॥ विन अक्षर नहिं पावे “ती ॥ अक्षर


१५५ लगी ॥ १५६ गुरू ॥ १५७ नाव किश्ती ॥ १५८ बीच धारमें ॥ १५९ दक्षिण पंथ ॥१६०वाममार्ग ॥ १६१ अपना॥१६२प्रकाश १६३ मुक्ति ॥