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रमैनी।
गुरुमुख सुख निज अति दातार ३७ ॥ साक्षी ॥ अक्षर हैं। तिहु भर्मका,वितु अक्षर नहि जान॥शुरू कृपानिज बुद्धिबल, तब होवे पहिचान २९ । साक्षी ॥ जैहवां से सब प्रगटे, सो हम समझत नाहि ॥ यह अज्ञान है मानुषा, सो गुरु ब्रह्म कहि ताहि ॥ ३० ॥ साक्षी ॥ ब्रह्म विचारे ब्रह्मको, पारख गुरु प्रसाद ॥ रहित रहै पद परखिके, जिव से होय अँवाद ॥ ३१ ॥ मूल रमैनी सम्पूर्णा ॥ कठिन शब्द जेते रहे, टिप्पणी करि बनाय ॥ बाकी अब कछु होय जो दीजो संत जनाय ॥ १ ॥ गुरुथल होता जानिये, शिवहर जन्म स्थान। युगलानन्द मम नाम है, जानो संत सुजान ।। २ ॥ |
१६८ जहांसे ॥ १६९ दया, कृपा ॥ १७० अलग ॥ १७१ वाद रहित ॥ . १७३ जिला सारन डा० १० कुचाहकोटके इलाकेमें और हथुआसे पांच कोस उत्तर पर है ॥ १७४ बिहार प्रान्तके मुजफ्फरपुर जिले में राजस्थान हैं।
इति श्रीमूलरमैनी प्रसिद्ध अक्षरखण्डकी रमैनी स्वामी युगलानन्द कबीरपंथी भारतपर्थिद्वारा संशोधिता समाप्ती ।
पुस्तक मिलनेका ठिकाणा
खेमराज श्रीकृष्णदास, ** श्रीवेंकटेश्वर ( स्टीम् ) यन्त्रालय-बब्बई.